भारत का एक मशहूर ठग जिसका नाम है नटवरलाल। एक ऐसा ठग जिसके भारत के साथ-साथ देश दुनिया में भी खूब चर्चे थे। ऐसा ठग जिसने ना जाने कितनी बार ताजमहल बेच दिया, लाल किला बेच दिया, यहां तक कि इस ठग ने राष्ट्रपति भवन तक को नहीं छोड़ा।

कहते हैं कि हर इंसान के पास अपना एक हुनर होता है। कोई अच्छा कवि होता है, तो कोई अच्छा लेखक है, कोई अच्छा गायक होता है, तो कोई अच्छा कलाकार । लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा है कि एक हुनरमंद चोर भी हो सकता है? इसका जवाब शायद ही हां हो।

 यूं तो इस नटवरलाल का असली नाम मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव था। लेकिन लोगों को ठगने के लिए उसने अपने कई नाम बदले। मिथिलेश कुमार का जन्म  बिहार के सीवान जिले के बंगरा गांव में सन 1912 में हुआ। मिथिलेश कुमार पढ़ लिख कर वकील बना। लेकिन उसकी किस्मत की लकीरों में कुछ और ही लिखा था। मिथिलेश कुमार ने सबसे ज्यादा कारनामे नटवरलाल नाम से ही किए।

 नटवरलाल नाम से ठगी के इतने बड़े-बड़े कांड हुए कि यह नाम ठगी और जालसाजी का पर्यायवाची ही बन गया। यानी किसी को अगर सीधे-सीधे जालसाज ना कह पाए तो नटवरलाल बोल दिया जाता है। वैसे हमारे हिंदू धर्म में भगवान श्री कृष्ण के नृत्तक रूप को भी नटवरलाल के नाम से जाना जाता है 

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 इसके ठगी के किससे विदेशों तक में मशहूर हैं लेकिन इन किस्सों की शुरुआत नटवरलाल के पड़ोस से ही हुई। हुआ कुछ यूं कि एक बार मिथिलेश को उनके पड़ोसी ने बैंक ड्राफ्ट जमा करने के लिए भेजा। वहां जाकर मिथिलेश ने पड़ोसी के हस्ताक्षर को हूबहू कॉपी कर दिया। इसके बाद उसने कई दिनों तक अपने पड़ोसी के जाली दस्तखत कर उनके खाते से पैसे निकाले। जब पड़ोसी को इस बात की भनक लगी, तब तक मिथिलेश अकाउंट से 1000 रुपए निकाल चुका था।

घटना की जानकारी पड़ोसी ने मिथिलेश के पिता को दी जिसके बाद पिता ने मिथिलेश को खूब मारा पीटा और गुस्से में मिथिलेश कोलकाता चला आया। वहां जाकर उसने कॉमर्स से ग्रेजुएशन की. बाद में सेठ केशवराम नाम के एक व्यक्ति ने मिथिलेश को अपने बेटे को पढ़ाने के लिए रख लिया। इस दौरान जब मिथिलेश ने सेठ से अपनी स्नातक की पढ़ाई के लिए पैसे उधार मांगे तो सेठ ने मिथिलेश को पैसे देने से इनकार कर दिया। सेठ के इनकार करने से मिथिलेश  चिढ़ गया उसने रुई की गांठ खरीदने के नाम पर सेठ से 4.5 लाख रुपए ठग लिए।

बस फिर क्या था ठगी का किस्सा यहीं से शुरू होता चला गया। बड़े-बड़े नेताओं के नाम पर भी मिथिलेश उर्फ नटवरलाल बड़ी-बड़ी चोरियों को अंजाम देने लगा था।

 ठगों के इस राजा के कारनामों पर अमिताभ बच्चन की मिस्टर नटवरलाल समेत कई फिल्में बन चुकी हैं।


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दिल्ली के कनाट प्लेस स्थित एक घड़ी की दुकान में सफेद कमीज और पैंट पहने एक बुजुर्ग ने प्रवेश किया और खुद का परिचय वित्तमंत्री नारायण दत्त तिवारी के पर्सनल स्टाफ डी.एन. तिवारी रूप में देकर दुकानदार से कहा कि प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने पार्टी के सभी वरिष्ठ लोगों को समर्थन के लिए दिल्ली बुलाया है। इस बैठक में शामिल होने वाले सभी लोगों को वो एक-एक घड़ी भेंट करना चाहते हैं तो मुझे आपकी दुकान से 93 घड़ी चाहिए। दुकानदार भी एक साथ इतनी बड़ी बिक्री के लालच से खुद को रोक नहीं पाया।

अगले दिन वो बूढ़ा आदमी घड़ी लेने दुकान पहुंचा. दुकानदार को घड़ी पैक करने की बात कह एक स्टाफ को अपने साथ लेकर वहां पहुंचा जहां प्रधानमंत्री से लेकर बड़े-बड़े अफसरों के ऑफिस होते हैं। वह जाली दस्तखत करने में माहिर था। उसने स्टाफ को भुगतान के तौर पर 32,829 रुपए का बैंक ड्राफ्ट दे दिया। दो दिन बाद जब दुाकनदार ने बैंक जाकर  ड्राफ्ट जमा किया तो बैंक में पता चला कि वो ड्राफ्ट फर्जी है। इसके बाद दुकानदार को समझते हुए देर नहीं लगी कि वह शख्स कोई और नहीं बल्कि हिंदुस्तान का सबसे बड़ा ठग नटवरलाल था।

इसके बाद कभी वित्तमंंत्री वीपी सिंह के नाम पर तो कभी यूपी के सीएम के नाम पर नटवर लाल अलग-अलग शहर में दुकानदारों का चूना लगाता रहा।

एक बार नटवरलाल के पड़ोसी गांव में उस समय के राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद आए हुए थे। जब नटवरलाल को डा. राजेंद्र प्रसाद से मिलने का मौका मिला तो उसने उनके सामने भी अपनी कला का प्रदर्शन किया और राष्ट्रपति के भी हुबहू हस्ताक्षर करके सबको आश्चर्यचकित कर दिया। 

इस पर प्रधानमंत्री ने नटवरलाल को समझाते हुए कहा कि तुम बहुत प्रतिभावान हो, इसका उपयोग तुम सकारात्मक कामों में करो। लेकिन उस समय भी नटवरलाल के दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा था। उसने फर्जी सरकारी कर्मचारी बन कर देश के राष्ट्रपति भवन तक को बेच डाला। हैरानी की बात तो यह है कि जालसाजी में नंबर वन नटवरलाल ने जब संसद को बेचा था, तब सारे सांसद वहीं उपस्थित थे। कुछ इसी तरह नटवरलाल ने फर्जी सरकारी कर्मचारी बन कर  दो बार लाल किले और तीन बार ताजमहल की इमारतों को भी बेचा।


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 जाली दस्तखत करने में माहिर नटवरलाल टाटा, बिरला,धीरूभाई अंबानी जैसे उद्यमियों से लेकर आम दुकानदारों, पड़ोसियों तक के लाखों करोड़ों रुपए हड़प जाता। वह इन उद्योगपतियों से समाजसेवी बनकर मिलता था और समाज के कार्यों के लिए बहुत मोटा चंदा लेकर गायब हो जाता था।

पुलिस नटवरलाल को 8 राज्यों में 100 से ज्यादा मामलों को लेकर ढूंढ रही थी। अपने जीवन काल में उसे 10 से ज्यादा बार पकड़ा गया और जेल भी हुई लेकिन वह जेलों से भाग जाने में भी माहिर था। 9 बार नटवरलाल को गिरफ्तार किया गया था, जिसमें से 8 बार वो पुलिस वालों को चकमा देकर फरार हो गया ।

नटवरलाल को आखिरी बार जून 24, 1996, को देखा गया था जब बढ़ती उम्र होने के कारण उसका स्वास्थ्य खराब रहने लगा तो अदालत के आदेश पर तीन पुलिस वाले नटवरलाल को इलाज के लिए एम्स-दिल्ली ले जा रहे थे। 84 की उम्र मे नटवरलाल व्हीलचेयर पर था। ठीक से उठने के लिए भी नटवरलाल को सहारे की जरूरत होती थी। 

खैर, तीन पुलिस वालों के साथ नटवरलाल दिल्ली स्टेशन पहुंचता है। स्टेशन पर उतरकर चारों लोग एंबुलेंस का वेट कर रहे होते हैं। इसी दौरान दो हवलदार स्टेशन पर ही किसी काम के चलते वहां से चले जाते हैं। इससे कुछ ही वक्त पहले तीनों पुलिस वालों ने मिलकर नटवरलाल को स्टेशन की बेंच पर लिटाया था। दोनों पुलिसवालों के जाने के बाद नटवरलाल ने तीसरे पुलिस वाले को चाय पीने की इच्छा जताते हुए पास ही में चाय लेने भेज दिया। थोड़ी देर बाद तीनों पुलिस वाले जब बेंच के पास लौटे तो तीनों की सांसे थम गई।

कई हफ्तों से दूसरों के सहारे खड़े होने वाला नटवरलाल बेंच पर नहीं था। इस बार भी वह जेल से भागने में कामयाब रहा। इसके बाद नटवरलाल कहां गया किसी को उसके बारे में पता नहीं चला।