पिताजी - Inspirational Story In Hindi - Storykunj
मिस्टर भगवानदास एक स्कूल मे प्रिंसिपल के पद पर कार्यरत हैं । आज सुबह मिस्टर दास जैसे ही घर से निकलने लगे इतने मे पीछे से उनके पिता राधेश्याम जी ने आवाज लगाई......
पिताजी - बेटा मेरी आँख का ड्रॉप्स खत्म हो गया। तीन-चार दिन हो गए । तुम आफिस जा रहे हो तोआज शाम को लौटते हुए मेरा आई ड्रॉप भी लेते आना ।
दास जी - गुस्सा होते हुए बोले- क्या पापा, कितनी बार कहा है कि जाते समय पीछे से टोका मत करो, अपशगुन होता है।
पिताजी - बेटे, तुम शिक्षा-विभाग के इतने बड़े अधिकारी होकर भी यह शगुन-अपशगुन जैसी बातों को मानते हो? ठीक है अब नही बोला करूँगा, मैं ध्यान रखूंगा ।
दास जी बिना कुछ बोले चले गये।
कुछ ही देर में वह एक विशाल सभा कक्ष में जाकर मंच पर बैठ गए।
प्रिंसिपल दास जी -(वहां उपस्थित अधिकारी-कर्मचारियों के अभिवादन के बाद मीटिंग शुरू करते हैं ) साथियों ! शासन के आदेशानुसार यह दो दिवसीय मीटिंग हो रही है, जिसमे हमे स्कूल चलो अभियान की ट्रेनिंग लेना है.......
तभी उनकी नज़र देर से मीटिंग में प्रवेश करते हुए एक शिक्षक प्रदीप शर्मा जी पर पड़ी, तो चिल्लाकर बोले- मास्टर प्रदीप शर्मा , यह कोई टाइम है मीटिंग में आने का? क्यों न आपका एक दिन का वेतन काटा जाए। ताकि स्कूल के सभी शिक्षक समय के महत्व को समझें और उसका नियमित पालन करें।
आज आप लेट क्यों आये ? इस बात का आपको स्पस्टीकरण देना होगा। कल लेकर आना ।
मास्टर प्रदीप शर्मा जी बिना कुछ बोले
सर झुकाए खड़े रहे। जब उन्होनें अपना सिर सीधा किया तब लोगों ने देखा उनकी आंखों में आंसू थे ।
मीटिंग समाप्त हो चुकी थी।
प्रिंसिपल दास जी - (अपने बड़े बाबू को बुलाकर आदेश देते हुए बोले ) मिस्टर चौहान, शिक्षक प्रदीप शर्मा का एक दिन का वेतन काटने का आर्डर टाइप किया जाए ।
बड़ा बाबू - साहब जी,आप उनकी एक दिन का नही, एक महीने का वेतन भी रोकने का आदेश देंगे तो भी प्रदीप सर आपत्त्ति नही करेंगे। सिर झुकाकर आंसू बहाते रहेंगे। यह नोकरी उनकी कमजोरी भी है और मजबूरी भी है।
प्रिंसिपल दास जी - जो भी हो, अधिकारी लोग अक्सर दिमाग से काम लेते हैं, जो अधिकारी दिल से काम लेता है। वह अधिकारी अक्सर फेल हो जाता है। कल उनके एक दिन के वेतन काटने का आदेश टाइप करके ले आना।
बड़े बाबू - सर जी, एक-दो दिन रुक जाईये।
प्रिंसिपल दास जी - देखिये बड़े बाबू, पेंडिंग काम एक लाश के समान होता है, जितनी देर करोगे उतनी ही सड़ांध होगी । यह काम कल ही होना चाहिए।
बड़े बाबू - जी सर
मीटिंग समाप्त होने के बाद पिताजी का आई ड्रॉप लिए बिना ही मिस्टर दास जी अपने घर पहुंचे । दरवाजे पर टकटकी लगाए उनके पिता बैठे थे आज उनका पुत्र आई ड्रॉप लेकर आएगा।
बेटे को देखते ही उनकी आंखें सवाल पूछ रही थीं कि बेटा मेरा आंखों का ड्रॉप्स क्यों नही लाये?
दास जी - (घर मे प्रवेश करते ही दास जी अपनी पत्नी को आवाज़ लगाते है) मधुलिका...... मधुलिका
मधुलिका - जी अभी आई.....
आप आ गए मैं आपके लिए पानी लेकर आती हूं......
मिस्टर दास - एक मिनट रुकिए (मधुलिका को एक पेन ड्राइव देते है ) यह लीजिए तुम्हारी फरमाइश की नई फ़िल्म ।
मधुलिका - लेकिन मैंने कब फरमाइश की j? चलो ले आये अच्छा किया। लेकिन आपके पापा तीन दिन से आंखों का ड्रॉप्स मांग रहे हैं वह भी ले आते। आजकल करते-करते तीन-चार दिन बीत गए ।
दास जी- अरे अब तुम मूड खराब मत करो। वो फ़िजूल की फरमाइश करते रहते हैं। चलो फ़िल्म देखें।
अगले दिन दास जी मीटिंग में जाने की तैयारी कर रहे थे कि तभी बड़े बाबू आ गए और शिक्षक प्रदीप शर्मा के एक दिन के वेतन काटने के आदेश हस्ताक्षर हेतु सामने रख दिया। दास जी ने वह आदेश पढ़कर हस्ताक्षर कर के अपने पास रख लिया।
बड़ा बाबू - सर जी, अभी आप भी मीटिंग में जा रहे हैं। मुझे भी वही चलना है। सर जी, आपकी शान के विरुध्द मेरा एक छोटा सा निवेदन है। अगर उचित समझें तो रास्ते मे ही प्रदीप शर्मा जी का घर है। उनके पिता बहुत बीमार हैं सिर्फ एक मिनट उनको देखते हुए चलें ?
दास जी बहुत देर तक सोचने के बाद स्वीकृति दे देते हैं। फिर क्या था, दोनों कुछ देर में ही शर्मा जी के घर पहुंच गए।
शिक्षक प्रदीप शर्मा अपने घर के बाहर
अपने बीमार विकलांग पिता को स्नान करा रहे थे।
अचानक से अपने अधिकारी को सामने पाकर शर्मा जी चोंक पड़े ।
प्रदीप शर्मा - ( हाथ जोड़कर बोले ) सर जी, आप मेरे घर आये, मेरे अहोभाग्य.....
सर जी, यह मेरे पिता जी हैं। इन्होंने मजदूरी करके मुझे पाला है। इन्होंने पूरा जीवन मेरी परवरिश में लगा दिया। मुझे जवान करते-करते खुद बूढ़े हो गए । बिल्कुल आपके पिता के समान । आज यह बीमार हैं इसलिए मेरा भी फ़र्ज़ है कि इनकी सेवा करूँ।
सर जी ! अब आप ही बताइए दुनियाँ की हर चीज खोने के बाद मिल सकती है। लेकिन अपने पिता को खो दिया तो फिर इनको सपने में भी पाना कठिन है। आप मेरा एक दिन का वेतन काट रहे हैं। मुझे जरा भी दुख नहीं है। भले ही महीने भर का वेतन कट जाए। ज्यादा से ज्यादा क्या होगा ...यही ना कि भूख लगेगी। भूख लगेगी तो भीख मांग लूंगा। लेकिन अपने पिता की सेवा में कमी नही कर सकता।
यह सुनकर दास जी ने वेतन काटने वाले आदेश को फाड़कर फेंक दिया।
दास जी - ( शिक्षक प्रदीप शर्मा के कांधे पर हाथ रखकर बोले) शर्मा जी, आपकी पितृ-भक्ति के आगे नममस्तक हूँ। इतना कहकर वहां से निकल गए।
फिर दास जी मीटिंग में पहुचे। मन में अजीब सी बेचैनी थी। वहां थोड़ी देर बैठे और उठकर वहां से सीधे अपने घर आ गए। वहां घर मे आज पापा नजर नहीं आए उन्होंने अपने पापा को इधर-उधर ढूंढा, लेकिन वह नही मिले ।
तभी उनके पास किसी का मोबाइल कॉल आया-साहब जी, आपके पिता को कोई गाड़ी वाला टक्कर मार कर भाग गया, लोगों की मदद से मैं उन्हें हॉस्पिटल ले कर आया हूं। जल्दी आइए । वह अंतिम सांस गिन रहे हैं।
दास जी तत्काल हॉस्पिटल भागे.....
उन्होंने देखा अस्पताल के जनरल वार्ड के बेड पर उनके पिता गम्भीर हालत में पड़े हुए हैं।
दास जी उनसे लिपट कर रो पड़े
दास जी - ( लड़खड़ाती ज़ुबान में बोले ) पापा जी, आप इस हाल में?
राधेश्याम जी - बेटा, जब तुम्हारी माँ की मृत्यु हुई थी ना । तब तुम बहुत छोटे थे। लोगो ने मुझसे बहुत कहा कि दूसरी शादी कर लो। लेकिन मैंने माता-पिता दोनों की जिम्मेदारी अकेले निभाने का फैसला लिया और अपना जीवन तुम्हें नेक ओर कामयाब इन्सान बनाने में लगा दिया। लेकिन निश्चित ही मेरी परवरिश में कुछ कमी रह गई। अपनी आंख के इलाज के लिए मुझे अकेला अस्पताल आना पड़ा। अब मेरा अंतिम समय आ गया है। तुम्हें खुश रहने का आशीर्वाद देता हूँ।
दास जी - (हाथ जोड़कर पापा के हाथ को अपने हाथों में लेकर रोते-रोते बोले) पापा जी,मुझे माफी मांगना नही आता, लेकिन मुझे इतना पता है । आपको माफ करना आता है। प्लीज पापा मुझे माफ़ कर दो, मैं समझ ना सका, मुझसे बहुत बड़ी भूल हुई ।
लेकिन जिसे माफ करना था वह दुनियाँ छोड़कर जा चुका था।
दास जी बिलखकर रो पड़े। तभी वहां शिक्षक प्रदीप शर्मा पहुंचते हैं ।
प्रदीप शर्मा - (रुमाल से उनके आंसू पोंछते हुए कहते हैं) साहब जी ! हम अपने असहाय बुजुर्गों को खोने के बाद उनके उपकारों को याद करके रोते हैं। अगर उनके जीवनकाल मे ही उनके उपकारों को याद करते रहें तो कभी बाद में रोना या पछताना न पड़े।
Inspiration - हम भूल जाते है कि हमारा वर्तमान काल भी कभी न कभी भूतकाल होगा। उम्र बढ़ने पर अपने बच्चों से हमें भी तो उम्मीदें होंगी कि वह हमारा ख्याल रखें।
हमारे धर्म शास्त्र सदियों पहले ही लिख चुके हैं- पितृ देवो भवः। यह असत्य नही है, लेकिन हम पुराणों के साथ नहीं बल्कि जमाने के साथ चलते हैं। आज हमारे अंदर का इंसान मर चुका है। ये आज की सच्चाई है। बच्चे कामयाबी और दौलत की चकाचौंध में खोकर सब कुछ भूल चुके हैं
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