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मकान की नींव में कलश और चांदी का सर्प क्यों दबाया जाता है ? आइये जानते है - Religion Story In Hindi - Storykunj


नया मकान या भवन का निर्माण कार्य शुरू करने से पहले उसकी नींव में चांदी का सर्प और कलश रखा जाता है।

 आखिर हिंदू धर्म में नींव पूजन में कलश और  चांदी का सर्प क्यों दबाया जाता है,श्रीमद्भभागवत महापुराण मे वर्णन है । 

श्रीमद्भभागवत महापुराण के पांचवें स्कंद में लिखा है कि पृथ्वी के नीचे पाताल लोक है और इस पाताल लोक के स्वामी शेषनाग हैं। भूमि से दस हजार योजन नीचे अतल, अतल से दस हजार योजन नीचे वितल, उससे दस हजार योजन नीचे सतल, और इसी क्रम से सब लोक स्थित हैं।

अतल, वितल, सतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल ये सभी सातों लोक पाताल स्वर्ग कहलाते हैं। इनमें भी काम, भोग, ऐश्वर्य, आनन्द, विभूति ये वर्तमान हैं। दैत्य, दानव, नाग ये सब वहां आनन्द पूर्वक भोग-विलास करते हुए रहते हैं।


 इनमें देवलोक की शोभा से भी अधिक बाटिका और उपवन हैं। इन पातालों में सूर्य आदि ग्रहों के न होने से दिन-रात्रि का विभाग नहीं है। इस कारण काल का भय नहीं रहता है। यहां बड़े-बड़े नागों के सिर की प्रकाशमान मणियां अंधकार दूर करती रहती हैं।

पाताल में ही नाग लोक के अधिपति वासुकी आदि नाग रहते हैं। श्री शुकदेव के मतानुसार पाताल से तीस हजार योजन दूर शेषजी विराजमान हैं। शेषजी के सिर पर पृथ्वी टिकी हुई है। जब ये शेष प्रलय काल में जगत के संहार की इच्छा करते हैं, तो क्रोध से कुटिल भृकुटियों के मध्य तीन नेत्रों से युक्त ग्यारह रुद्र त्रिशूल लिए प्रकट होते हैं।

 पौराणिक ग्रंथों में शेषनाग के फण (मस्तिष्क) पर पृथ्वी के टिकी होने का उल्लेख मिलता है।

शेष चाकल्पयद्देवमनन्तं विश्वरूपिणम् ।
 यो धारयति भूतानि धरां चेमां सपर्वताम् ॥
अर्थात् इन परमदेव ने विश्वरूप अनंत नामक देवस्वरूप शेषनाग को उत्पन्न किया, जो पर्वतों सहित समस्त पृथ्वी को तथा भूतमात्र को धारण किए हुए है।

उल्लेखनीय है कि हजार फणों वाले शेषनाग समस्त नागों के राजा हैं । और भगवान् श्री हरि की शय्या बनकर सुख पहुंचाने वाले, उनके अनन्य भक्त हैं। और बहुत बार भगवान् के साथ-साथ अवतार लेकर उनकी लीला में सम्मिलित भी रहते हैं ।



श्रीमद्भभागवत गीता के दस वें अध्याय के उनत्तीस वें श्लोक में भगवान् श्री कृष्ण ने कहा है - अनन्तश्चास्मि नागानाम्' अर्थात् मैं नागों में शेषनाग हूं ।

नींव पूजन के समय किया जाने वाला पूरा कर्मकांड इसी विश्वास पर आधारित है कि जिस प्रकार शेषनाग अपने फण पर संपूर्ण पृथ्वी को धारण किए हुए है, ठीक उसी प्रकार मेरे इस मकान की नींव भी प्रतिष्ठित किए हुए चांदी के नाग के फण पर पूर्ण मजबूती के साथ स्थापित रहे ।

माना जाता है कि इस पूरे विधि-विधान से किए गए भूमि पूजन के बाद स्वयं भगवान विष्णु , देवी लक्ष्मी और शेषनाग मकान की रक्षा का दायित्व अपने ऊपर ले लेते हैं।

 शेषनाग क्षीरसागर में रहते हैं। इसलिए भूमि पूजन के कलश में घी, दूध, दही व पूजन की अन्य सामग्री सहित मंत्रों द्वारा शेषनाग का आह्वान किया जाता है ताकि वे साक्षात् उपस्थित होकर भवन की रक्षा का भार वहन करें । विष्णुरूपी कलश में लक्ष्मी स्वरूपी सिक्का डालकर पुष्प व दूध पूजन में अर्पित किया जाता है, दूध जोकि नागों को अतिप्रिय है ।

भगवान् शिवजी के आभूषण नाग ही है । लक्ष्मण जी और बलराम जी शेषावतार माने जाते हैं ।

 मकान बनवाते समय हर व्यक्ति सब प्रकार के यत्न कर लेना चाहता है ताकि उसके जीवन में शुभता आए और परिवार आनंदित होकर उस घर में अपना जीवन यापन करे।

इसी विश्वास से यह प्रथा जारी है।

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