सोच और संस्कार - Moral Story In Hindi - Storykunj
एक बहुत अमीर आदमी था। वह चाहता था कि उसके दान पुण्य का डंका बजता रहे। एक दिन मौका पाकर वह अमीर और आडंबरी व्यक्ति अपने दान-पुण्य का अपने ही मुंह से बखान करने संत कबीर के पास आ पहुंचा।
उसके मन में यह कपट था कि संत कबीर के पास कौन नहीं आता। यहां कबीर के माध्यम से सब जान जाएंगे कि वह कितना उदार दिल का है। कबीर उसकी बातें सुनते रहे। वह अपनी तारीफ में कसीदे काढ़ता रहा। बढ़ा-चढ़ाकर बताता रहा कि इसे इतना आटा दिया, उसे इतना कपड़ा दिया, वगैरह-वगैरह।
कबीर ने उसकी पूरी बात सुनकर मुस्कुराते हुए एक बुढ़िया को उस अमीर से भी ज्यादा बड़ा दानी और बड़ा प्रतापी कह दिया। यह सुनकर तो अमीर तिलमिला गया और कबीर से पूछ बैठा, कौन है वह, और ऐसा कितना हीरा मोती-दान दे रही है ?
तब कबीर ने संकेत करके कहा कि वह देखो वहां पड़ोस में एक बुढ़िया माई रहती है। जो चल फिर भी नहीं सकती। पर अक्सर भजन गुनगुनाती रहती है। यह सुनकर अमीर और भी जल भुन गया और वह उस बुढ़िया की छिपकर जासूसी करने लगा।
उसने देखा की बुढ़िया की झोपड़ी के सामने एक पोखर है। पोखर में कुछ मछलियां थी। बुढ़िया की उम्र इतनी ज्यादा हो चुकी थी कि वह तो ठीक से उठ बैठ भी नहीं पाती। फिर भी उसके चेहरे पर आनंद और संतुष्टि के भाव रहते। वह प्रेम पूर्वक भजन गाती रहती और उसी दौरान उठकर मछलियों के लिए चारा तैयार करती, तालाब में चारा डालती। ताकि मछलियों को भोजन की कमी ना हो। मछलियों के चारे का इंतजाम करने के लिए उसे अतिरिक्त मेहनत भी करनी होती थी। पर इससे उसको जरा भी मलाल ना था।
यह सब देखकर उस अमीर को अपने औच्छेपन का एहसास हुआ। वह शर्म से पानी-पानी हो गया। वह फिर संत के पास लौटा और अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांगी। तब कबीर ने कहा कि यह उस वृद्ध महिला का स्वभाव है। वह इस संस्कार से पोषित है कि अपनी क्षमता के अनुसार जितना हो सके किसी की मदद कर दी जाए।
यह उस दौलतमंद के लिए बहुत बड़ा सबक था।
Moral - आधुनिकता और भोगवाद का यह मकड़जाल है ही ऐसा कि जो इस में अटका वह भट्का। यह माहौल की मजबूरी हो गई है कि हम सब ऐसी दिनचर्या को अपना बना चुके हैं। जहां अपने सिवाय दूसरे किसी के बारे में कभी सोच ही नहीं पाते या फिर सोचना ही नहीं चाहते।
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पॉश सोसाइटी, आलीशान घर, मुलायम बिस्तर और तरह-तरह की सुख-सुविधाओं के बीच रहकर भी जाने क्यों, हमें चैन की नींद नहीं आती।
इसलिए जो लोग बिना बेर भाव से जीवन को जीना जानते हैं, उनके चेहरे पर हमेशा नूर होता है। बेकार का अहंकार नहीं पालना चाहिए। बड़प्पन ऐसे ही हासिल नहीं होता। एक साधारण इंसान असाधारण तब ही बनता है। जब वह अपना मूल्यांकन स्वयं करता है। और अपने आसपास हर किसी के लिए सहानुभूति और करुणा का भाव रखता है।
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