अहोई अष्टमी व्रत की पूजा व कथा - Religious Story In Hindi - Storykunj
हिंदी पंचांग के अनुसार, अहोई अष्टमी का व्रत हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। अहोई अष्टमी व्रत के दिन महिलाएं अहोई माता की विधि पूर्वक पूजा करती हैं। और अपनी संतान की दीर्घायु एवं उनके सुखी जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं।
अहोई पूजा में चांदी की अहोई बनाई जाती है। जिसे स्याऊं कहते हैं। ये स्याऊं माला कलावे में अहोई के लॉकेट और चांदी के दाने से बनाते है। जिसे अहोई पूजा के दौरान पूजा करके व्रती महिलाएं गले में धारण करती हैं। स्याऊं माला को दिवाली तक धारण करना जरूरी होता है।
अहोई अष्टमी (Ahoi Mata) की कथा :-
एक साहूकार था। जिसके सात बेटे, सात बहुएं और एक बेटी थी। सब कोई मिट्टी लेने गई तो मिट्टी खोदते समय ननंद के हाथ से स्याऊं का बच्चा मर गया। तब स्याऊं माता बोली - कि मैं तेरी कोख बांधुगी। तब ननंद ने सब भाभियों से कहा कि मेरे बदले तुम अपनी कोख बंधवा लो। तब छ: भाभियों ने तो मना कर दिया। परंतु छोटी भाभी ने सोचा अगर मैं अपने कोख नहीं बंधु वाऊंगी तो सासु जी नाराज होंगी। इसलिए उसने अपनी कोख बंधवा ली। तब उसके बच्चा होता और अहोई आठे के दिन मर जाता। तब पंडित को बुलाकर पूछा कि क्या बात है जो मेरा बच्चा अहोई अष्टमी के दिन मर जाता है। तब उसने कहा कि तू सुरही गाय की सेवा कर। सुरई गाय स्याहू माता की सहेली है। वह तेरी कोख छोड़ेगी तब तेरा बच्चा जिएगा वह सुबह जल्दी उठकर सुरही गाय का काम कर आती। गौ माता ने सोचा कि आज आजकल कौन मेरी सेवा कर रहा है। मेरी बहुएं तो काम करती हुई लड़ाई करती हैं। तो गौ माता ने सुबह उठकर देखा कि साहूकार के बेटे की बहू है। जो सारा काम कर जाती है। गौ माता बोली तेरी क्या इच्छा है। जो तू मेरा इतना काम करती है। मांग क्या मांगती है। तो साहूकार की बहू बोली मुझे वचन दो। तो गौ माता ने वचन दे दिया। तब वह बोली कि स्याहू माता तुम्हारी सहेली हैं। और स्याहू माता ने मेरी कोख बांधी है। सो तुम मेरी कोख छुड़वा दो। तब गौ माता सात समुंदर पार अपनी सहेली के पास जाने लगी तो रास्ते में धूप थी। वह एक पेड़ के नीचे बैठ गई। थोड़ी देर में एक सांप आया और पेड़ पर गरुड़ पंखनी का बच्चा था उसको डसने लगा तो साहूकार की बहू ने सांप को मारकर ढाल के नीचे दे दिया। और बच्चे को बचा लिया। गरुड़ पंखनी आई और साहूकार के बेटे की बहू को चोच मारने लगी तो वह बोली कि मैंने तेरा बच्चा नहीं मारा। यह सांप तेरा बच्चा मार रहा था तो मैंने बचा लिया। तब गरुड़ पंखनी बोली कि तू क्या मांगती है। वह बोली सात समुंदर पार स्याहू माता रहती हैं। हमको उसके पास पहुंचा दो। तो गरुड़ पंख नी ने उन्हें अपनी पीठ पर बिठाकर स्याहू माता के पास पहुंचा दिया। स्याहू माता बोली आओ बहन बहुत दिन में आई।
और स्याहू माता बोली कि मेरे तो सिर में बहुत जू पड़ गई। फिर साहूकार की बहू ने उसकी सारी जू निकाल दी। तब स्याहू माता बोली तूने मेरी बहुत भलाई करी। इसलिए तेरे सात बेटे सात बहुए हो। तो बहू बोली कि मेरे तो एक भी बेटा नहीं सात कहां से होंगे। तब स्याहू माता बोली क्यों नहीं होंगे। तब वह बोली कि पहले मुझे बचन दो। स्याऊ माता ने कहा अगर मैं वचन से फिर जाऊं तो धोबी के घाट पर काकरी हो जाऊं ।
तब साहूकार की बहू ने कहा मेरी कोख तो तेरे पास बंधी पड़ी है। तब स्याहू माता बोली तूने मुझे ठग लिया मैं तेरी कोख खोलती नहीं परंतु अब खोलनी पड़ेगी। जा तेरे घर सात बेटे सात बहुएं मिलेंगी। और सात उजमन करियो, सात अहोई मांडना, सात कड़ाही करना। वह घर गई तो वहां देखा सात बेटे और सात बहू बैठी हैं। बहुत धन हो गया। तो उसने सात अहोई मांडी, सात उजमन करे, सात कड़ाही करी। सारी जेठानी बोली कि सब जल्दी-जल्दी पूजा कर लो नहीं तो वह रोने लग जाएगी। थोड़ी देर में उन्होंने अपने बेटों से कहा कि तुम्हारी चाची रोई क्यों नहीं। तो बच्चों ने देखकर आकर बताया कि चाची के यहां अहोई माता मंड रही है। तब जेठानी भाग कर गई और देखा की कोख छुड़ा लाई है। तब वह बोली तुमने तो कोख बंधवाई नहीं, मैंने बंधवा ली। परंतु स्याऊ माता ने दया करके मेरी कोख खोल दी है। स्याऊ माता जैसे साहूकार के बेटे की बहू की कोख खोली वैसे कहते-सुनते सब परिवार की कोख खोलते जाइयो।
जय हो होई माता की 🙏🙏
होई अष्टमी (Ahoi Mata) की कहानी सुनने के बाद बिंदायक जी की कहानी अवश्य सुननी चाहिए।
बिंदायक जी की कहानी :-
एक बार बिंदायक जी महाराज एक चुटकी में चावल और एक में दूध लेकर घूम रहे थे। और कह रहे थे कि कोई मेरी खीर बना दे। तो एक बुढ़िया माई बोली कि ला मैं खीर बना दूं। वह एक कटोरी ले आई। तब बिंदायक जी बोले कि बुढ़िया माई कटोरी क्यों लाई है। भगोना लाकर चढ़ा दे। तब बुढ़िया माई बोली कि इतने बड़े का क्या करेगा। कटोरी ही बहुत है। तो बिंदायक जी ने कहा कि तू चढ़ा कर तो देख। बुढ़िया माई ने भगोना लाकर चढ़ा दिया। और चढ़ाते ही वह दूध से भर गया। फिर बिंदायक जी ने कहा मैं बाहर जाकर आता हूं। तो तू खीर बनाकर रखियो। खीर बन कर तैयार हो गई। परंतु बिंदायक जी नहीं आए। तो बुढ़िया माई का मन ललचा गया और वह दरवाजा बंद करके खीर खाने लगी। और बोली कि बिंदायक जी महाराज भोग लगाओ। और वह खीर खाने लगी। इतने में बिंदायक जी आ गए और बोले ! बुढ़िया माई खीर बना ली। तो बुढ़िया माई बोली हां ! आकर जीम लो। तो बिंदायक जी बोले मैंने तो जीम लिया। जब तू जीमने लगी। तभी मैंने भोग लगा लिया था। तब बुढ़िया माई बोली कि तुमने तो मेरा पर्दा हटा दिया। परंतु किसी और का पर्दा मत हटाना। तब बिंदायक जी महाराज ने खूब धन दौलत भर दिया।
हे विनायक जी महाराज जैसा बुढ़िया माई को दिया वैसा कहते-सुनते सब परिवार को देना।
जय हो बिंदायक जी महाराज की 🙏🙏
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