मीठे शरबत की छबील क्यूं लगाई जाती है? जानने के लिए पढ़िए यह कहानी - Short Story In Hindi - Storykunj
श्री गुरु अर्जुनदेव जी सिखों के पांचवे गुरु होने के साथ-साथ चौथे गुरु राम दास जी और माता भानी जी के सुपुत्र भी थे।
वे शिरोमणि, सर्वधर्म समभाव के प्रखर पैरोकार होने के साथ-साथ मानवीय आदर्शों को कायम रखने के लिए आत्म बलिदान करने वाले एक महान आत्मा थे।
श्री गुरु अर्जुनदेव जी को जिस दिन गर्म तवी पर बिठाया गया, उसी शाम को गुरु जी को वापिस जेल मे डाल दिया गया, और बहुत सख्त पहरा लगा दिया गया कि कोई भी गुरुजी से मिल ना सके।
उस समय चँदू लाहोर का नवाब था। जिसके हुकुम से ये सब हूआ था। उसी रात को चँदू की पत्नी, चँदू का पुत्र कर्मचंद और पुत्रवधू गुरु अर्जुनदेव जी से मिलने जेल मे गए। तो सिपाहियों ने उन्हें आगे नहीं जाने दिया।
तो चँदू की पत्नी और पुत्रवधू ने अपने सारे जेवरात उतार कर सिपाहियों को दे दिये और उस जगह पहुंच गए जहाँ गुरु जी कैद थे।
जब चँदू के परिवार ने गुरुजी की हालत देखी तो सभी रोने लगे कि इतने बड़े महापुरुष के साथ ऐसा सलूक ?
तब चँदू की पत्नी ने कहा गुरुजी मैं आपके लिए ठंडा मीठा शरबत लेकर आई हूँ कृपया करके शरबत पी लिजिए। ये कहते हुए शरबत का गिलास गुरुजी के आगे रख दिया।
तो गुरुजी ने मना कर दिया और कहा हम प्रण कर चुके हैं कि हम चँदू के घर का पानी भी नहीं पियेंगे।
ये सुन कर चँदू की पत्नी की आँखें भर आई और बोली कि मैंने तो सुना है कि गुरुजी के घर से कभी कोई खाली हाथ नहीं गया पर ?
तब गुरु जी ने वचन दिया कि माता इस मुख से तो मैं तेरा शरबत नहीं पियूँगा, पर हां एक समय ऐसा जरुर आएगा जब ये जो शरबत आप लेकर आयीं हैं, आपके नाम का ये शरबत हजारों लोग पिलाएंगे और लाखों लोग पिएंगे। आपकी सेवा सफल होगी।
आज भी ये छबील लगाई और पिलाई जाती है। ये गुरु अर्जुन देव जी का वचन है।
ये है छबील का इतिहास जो देश के हर गांव और शहर में ठंडे मीठे शरबत की छबीलें लगाई जाती है। निर्जला एकादशी पर्व पर छबील लगाकर राहगीरों को ठंडा मीठा शरबत श्रद्धा भाव के साथ वितरित किया जाता है।
तब चँदू की पुत्रवधू ने गुरु जी से विनती की,कि महाराज कल आपको शहीद कर दिया जयेगा। मेरी आपसे एक ही विनती है कि कल जब आप ये शरीर रुपी चोला छोड़ो तो मैं भी अपना शरीर छोड़ दूँ। मैं लोगों के ताने नहीं सुन सकती कि वो देखो चँदू की पुत्रवधू जा रही जिसके ससुर ने श्री गुरू अर्जुन देव जी को शहीद किया था।अगले दिन जब गुरु जी को शहीद किया गया तो चँदू की पुत्रवधू भी शरीर त्याग गई।
ये होता है अपने गुरु से सच्चा प्यार और गुरु के प्रति श्रद्धा।
बातों से कभी ईश्वर नहीं मिलता, धन्य है चँदू की पुत्रवधू।
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