पिता का निर्णय - Short Story In Hindi - Storykunj
जिंदगी में अक्सर दोराहों का सामना हो जाता है जिनमें किसी एक रास्ते को चुनना बहुत कठिन लगता है। किन्तु सही फैसला तो लेना ही पड़ता है। जिनमें दूरदर्शिता की कमी होती उनके सामने कभी दोराहे नहीं आते। उनका जिस तरह से जीवन चल रहा है, बस ठीक है।
बेहद सभ्य और संस्कारी डॉक्टर साहब का एक सुखी परिवार था। सुंदर पत्नी और शादी के लायक एक बेटा था मोनू। जिसे वे बहुत प्यार करते थे। गाँव में अपनी खेती-बाड़ी थी, धनाढ्यों में गिनती होती थी उनकी। शानदार बंगला था और बंगले में नए मॉडल की दो गाड़ियाँ थीं, एक उनके लिए और दूसरी उनके बेटे के लिए।
डॉक्टर साहब सर्जन थे। दिन भर हॉस्पिटल में व्यस्त रहते। बेटे की देख-रेख का सारा भार उनकी पत्नी पर था। राजकुमार की तरह वह पल रहा था। जब भी पैसे की जरूरत होती माँ इन्कार नहीं करती। इकलौता बेटा था इसलिए बेटे से सख्ती नहीं कर पाती थीं। नतीजा यह रहा कि वह बिगड़ैल के रूप में जाना जाने लगा। किसी तरह से उसने बीकॉम की पढ़ाई पूरी की थी।
मोनू दिखने में आकर्षक डीलडौल, गोरा चिट्टा था। पैदाइशी अमीर मोनू ने बचपन से कभी अभाव नहीं जाना था। इसलिए पैसे को पानी की तरह बहाता था। गुस्सा तो हरदम उसकी नाक पर ही रहता। गुस्से में तोड़फोड़, लड़ाई झगड़ा उसकी आदत में शुमार था। यही वजह थी कि वह किसी तरह की कोई नौकरी मैं नहीं लग सका। तो डॉक्टर साहब ने मोनू को बिजनेस में लगा दिया। यहाँ वह कामयाब हुआ, क्योंकि यह बिजनेस उसने अपनी मर्जी से चुना था।
इतने धनाढ्य परिवार में अपनी बेटी के विवाह के लिए कई पिता उत्सुक थे। मोनू आकर्षक तो था ही इसलिए खूब रिश्ते आने लगे। अन्त में हर प्रकार से योग्य लड़की सौम्या के साथ मोनू का रिश्ता पक्का कर दिया गया।
सौम्या में वह सारी खूबियां थी जो हर माता-पिता अपनी बहू में देखना चाहते हैं। अर्थात खूबसूरत , गोरी, घर के कामकाज में निपुण, सुशील और आज्ञाकारिणी। सभी खुश थे। डॉक्टर साहब की पत्नी बड़े ही शौक से बेटे की शादी की तैयारियां कर रही थीं। कपड़े, गहने सभी होने वाली बहू सौम्या की पसंद के खरीदे गए थे
निश्चित समय पर विवाह संपन्न हुआ। घर में खूब रौनक आ गई। इस घर में आकर सौम्या भी अपने भाग्य पर नाज़ कर रही थी।
सुंदर पत्नी पाकर डॉक्टर साहब का बेटा भी प्रसन्न था। अक्सर दोस्तों के साथ घूमने वाला बेटा अब घूमने के बजाए अधिकतर घर में ही रहता।
नई नवेली सौम्या ससुराल में बहुत प्रसन्न थी। सास-ससुर अपनी बहू की हर जरूरत और सुख सुविधा का पूरा ख्याल रखते। बहू भी सास-ससुर की सेवा में तल्लीन रहती।
रात बीतने को आई किन्तु डॉक्टर साहब की आँखों में नींद नहीं थी। सारी सात वे अँधेरे में ही कमरे की छत की ओर आँखें गड़ाए ताकते रहे। कभी करवट बदलते, कभी उठकर बैठ जाते। लग रहा था डॉक्टर साहब बहुत ही उधेड़बुन में थे।
उनकी इस बेचैनी की वजह थी उनका गुस्सैल बेटा मोनू । अपने बेटे के स्वभाव को लेकर डॉक्टर साहब सदा सशंकित रहते।
फ्रेंड्स एक पिता का निर्णय सही है या गलत। यह तो समय ही बताएगा। अपने स्वभाव के चलते क्या मोनू जीवन भर इस रिश्ते को निभा पाएगा ?
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