एक बेटी मेरे घर में भी आई है - Poetry In Hindi - Storykunj
एक सास द्वारा रचित अपनी बहू पर यह कविता बहुत ही प्यारी व निराली हैं।
पुत्रवधू के रूप में एक बेटी मेरे घर में भी आई है
माँ के आँचल में, सिर के पीछे उछाले गये चावलों को छोड़कर,
पाँव के अँगूठे से चावल का कलश लुढ़का कर, मेहंदी रचे पैरों से, लक्ष्मी का रूप लिये,
बहू का नाम धरा लाई है...
पुत्रवधू के रूप में एक बेटी मेरे घर में भी आई है
माँ ने बड़े अरमानों से,
दामाद के संग गठजोड़े में बाँध विदा किया,
उसी गठजोड़े में मेरे बेटे के साथ ,
आँखो में सपनों का संसार लिये आई है...
पुत्रवधू के रूप में एक बेटी मेरे घर भी आई है
गुड्डे गुड़ियों का संसार छोड़ कर, आदर्श बहू के संस्कार अपने भीतर संजोए,
जीवन का एक नया अध्याय शुरू करने,
माँ का घर छोड़,अपनी नई गृहस्थी बनाने,
बेटी से माँ का रूप धरने आई है...
पुत्रवधू के रूप में एक बेटी मेरे घर भी आई है
माँ के घर में उसकी खिलखिलाहट गूँजती होगी,
बचपन की फोटो एल्बम में देखकर,
माँ उसका चेहरा पढ़ती होगी,
यहाँ उसकी कलाई की चूड़ियां खनकती हैं, घर के आँगन में उसने खूबसूरत रंगोली सजाई है...
पुत्रवधू के रूप में एक बेटी मेरे घर में भी आई है
उसने माँ के घर की रसोई नहीं देखी शायद,
यहाँ रसोई में खड़ी वो डरी डरी सी घबराई है,
मुझसे पूछ - पूछ कर खाना बनाती है,
मेरे बेटे को मनुहार से भोजन करा के,
प्रशंसा सुन खिलखिलाई है...
पुत्रवधू के रूप में एक बेटी मेरे घर में भी आई है
अपनी ननद की चीजों को देखकर,
उसे अपनी भी बातें याद आई हैं,
उन्हें सँभालती है, देखती है, फिर से रखती है,
जैसे अपना बचपन दोबारा जीती है,
बरबस ही आँखें छलछला आई हैं...
पुत्रवधू के रूप में एक बेटी मेरे घर में भी आई है
जब भी मुझे बेटी की याद आती है "मैं हूँ ना"
कहकर तसल्ली देती है,
उसे फ़ोन करके यहां मिलने आने को कहती है,
अपने मायके से फ़ोन आने पर आँखें खुशी से चमक उठती हैं,
मायके मिलने जाने के लिये तैयार होकर आई है...
पुत्रवधू के रूप में एक बेटी मेरे घर में भी आई है
उसके लिये भी आसान नहीं था, माता-पिता का आँगन छोड़ना,
पर मेरे बेटे के साथ अपने खूबसूरत सपने सजाने आई है,
मुझे खुशी है, एक बेटी ससुराल जाकर अपना घर बसा रही,
एक यहाँ अपना सपनों का संसार बसाने आई है...
पुत्र वधू के रूप में एक बेटी मेरे घर में भी आई है
सभी सम्मानीय बहुओ और बेटियों को सादर समर्पित
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