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परिस्थिति अनुसार कर्म - Moral Story In Hindi - Storykunj


एक मन्दिर था। जो ट्रस्ट द्वारा संचालित था। उसमें सभी लोग तनख्वाह पर थे। आरती वाला, पूजा कराने वाला ब्राह्मण, घण्टा बजाने वाला भी तनख्वाह पर था।

घण्टा बजाने वाला आदमी आरती के समय, पूरे भक्ति भाव में इतना मगन हो जाता था कि होश में ही नहीं रहता था। वह पूरे भाव से स्वयं का काम करता था। मन्दिर में आने वाले सभी भक्त भगवान के साथ-साथ घण्टा बजाने वाले व्यक्ति के भाव के भी दर्शन करते थे। अपने काम के प्रति निष्ठा के कारण उसकी भी वाह-वाह होती थी।

एक दिन मन्दिर का ट्रस्ट बदल गया।  और नये ट्रस्टी ने ऐसा आदेश  जारी कर दिया कि अपने मन्दिर में काम करने वाले  हर  व्यक्ति का पढ़ा लिखा होना जरूरी है। और जो लोग पढ़े लिखें नही है, उन्हें निकाल दिया जाएगा।

 घण्टा बजाने वाले भाई को इस नए ट्रस्टी ने कहा कि तुम अपनी आज तक की तनख्वाह ले लो। और कल से तुम नौकरी पर मत आना।

उस घण्टा बजाने वाले व्यक्ति ने कहा, " बाबूजी भले ही मैं पढ़ा लिखा नही हूं परन्तु इस कार्य में मेरा भक्त भाव भगवान से जुड़ा हुआ है, अतः मुझे काम से ना निकाले !"

ट्रस्टी ने कहा, " देखो तुम पढ़े लिखे नही हो इसलिए तुम्हे रखा नहीं जाएगा।"

दूसरे ही दिन मन्दिर में नये लोगो को रख लिया गया।  परन्तु आरती में उपस्थित भक्त जनो को अब पहले जैसा मजा नहीं आता था। घण्टा बजाने वाले व्यक्ति की सभी को कमी महसूस होती थी।

कुछ लोग मिलकर घण्टा बजाने वाले व्यक्ति के घर गए और विनती की कि, " भाई तुम्हारे बिन आरती में पहले वाली बात नहीं रही। तुम मन्दिर आओ ।"

उस भाई ने उत्तर दिया " भाइयों ! अगर मैं आऊंगा तो ट्रस्टी को ऐसा लगेगा कि मैं नौकरी मांगने के लिए आया हूं।  इसलिए मैं नहीं आ सकता।"

वहां आये हुए लोगो ने एक उपाय बताया कि "मन्दिर के ही नजदीक आपके लिए एक दुकान खोल कर देते हैं। वहाँ आपको बैठना है और जब आरती का समय होगा ठीक उसी समय तुम घंटा बजाने आ जाना।  फिर कोई नहीं कहेगा कि तुम नौकरी के लिए आए हो।"

उस भाई ने मन्दिर के सामने एक छोटी सी दुकान शुरू की। और वो दुकान इतनी चली कि उसकी एक दुकान से सात दुकान हुई  और सात दुकानों से एक फैक्ट्री खोली ली ।

अब वो भाई मर्सिडीज़ से घण्टा बजाने आता था। 

 इसी तरह समय बीतता चला गया। और ये बात पुरानी सी हो गयी। 

 अब मन्दिर का ट्रस्टी फिर से बदल गया था ।

नये ट्रस्ट को नया मन्दिर बनाने के लिए दान की आवश्यकता थी। मन्दिर के नये ट्रस्टी को विचार आया कि सबसे पहले उस फैक्ट्री के मालिक से मंदिर के लिए चंदे की बात करके देखते हैं‌।

ट्रस्टी फैक्ट्री मालिक के पास पहुंचा। और मंदिर के लिए दान की बात की।  ट्रस्टी ने फैक्ट्री मालिक को बताया के सात लाख का खर्चा है।




फैक्ट्री के मालिक ने बगैर कोई सवाल किये एक खाली चेक ट्रस्टी के हाथ में पकड़ा दिया और कहा - " चैक भर लो !"

ट्रस्टी ने चैक भरकर उस फैक्ट्री मालिक को वापिस दिया। फैक्ट्री मालिक ने चैक को एक नजर देखा और उस ट्रस्टी को दे दिया।

ट्रस्टी ने चैक हाथ में लिया और कहा - "सिग्नेचर तो बाकी है।"

मालिक ने कहा - "मुझे सिग्नेचर करना नहीं आता । लाओ ! मैं इसमें अंगुठा लगा देता हूं। 
 "वही चलेगा।"

ये सुनकर ट्रस्टी चौंक गया और कहा - "साहेब तुमने अनपढ़ होकर भी इतनी तरक्की कर ली, यदि पढे लिखे होते तो कहाँ होते !"

वह सेठ हँसते हुए बोला, "भाई, मैं पढ़ा लिखा होता तो बस मन्दिर में घण्टा बजा रहा होता !"


Moral :-  काम कोई भी हो, परिस्थिति चाहे जैसी भी हो, आपकी काबिलियत आपकी भावनाओं पर निर्भर करती है। यदि आपकी भावनायें शुद्ध होंगी। आपके कर्म सत्यमार्ग पर होंगे तो ईश्वर और सुंदर भविष्य निश्चित रूप से आपका साथ देंगे। मन उज्ज्वल रखें, ईश्वर सदैव साथ रहेंगे । 


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