एक सुखद एहसास - Short Story In Hindi - Storykunj
दीपा मात्र 21 वर्ष की थी जब उसका विवाह जतिन के साथ समपन्न हुआ था । जतिन बेहद कम बोलने वाले और दिखने में आकर्षक थे। वे अपनी कोई भी बात कहने के लिए बहुत नपे तुले शब्दों का इस्तेमाल करते थे। दीपा को अपने लिए प्यार जतिन की आंखों में साफ दिखाई देता था। जतिन ने भी दीपा को खुश रखने में कोई कमी नहीं रखी थी। लेकिन दीपा हमेशा से यही चाहती थी कि जतिन शब्दों में अपने प्यार का खुलकर इजहार करें।
यह उम्र ही होती है। जब आप रंगीन और रूमानी दुनिया में रहते हैं । जिंदगी सतरंगी लगती है। जिससे बहुत से सपने और उम्मीदें जुड़ी होती हैं ।
दीपा भी आंखों में सुनहरे भविष्य के सपने सजाए पति के साथ ससुराल के रीति रिवाजों को निभाते हुए सुखी जीवन व्यतीत कर रही थी ।
कभी कभार पति - पत्नी के बीच प्यार भरी नोकझोंक, तर्क - वितर्क व स्नेह भरे जीवन के बीच उसे अपने पति की अति अनुशासन प्रियता खटक जाती थी ।
दीपा के अनुसार वैवाहिक जीवन में भी समय - समय पर प्रेम में रूठने मनाने की आवश्यकता होती है। जिससे सहजता और तरलता बनी रहे। पर क्या जतिन भी ऐसा सोंचते हैं ?
शायद नहीं , इन सब से अनभिज्ञ उनकी दुनिया किताबों और न्यूज़पेपर पठन - पाठन तक सीमित रहती ।
खैर बावजूद इसके दीपा ने कभी किसी से शिकायत न करते हुए दो प्यारे प्यारे बच्चों (बेटो) को जन्म दिया एवं उनकी परवरिश बहुत जतन से की।
समय अपनी गति से आगे बढ़ता रहा दोनों बेटे भी अच्छी शिक्षा प्राप्त कर अलग अलग शहरों में नौकरी करने लग गए थे। दोनों के धूमधाम से विवाह भी संपन्न हो चुके थे।
दीपा उम्र के पचासवें दशक में है। और अब नन्हे मुन्ने पोते पोतियों की दादी बन चुकी है । जीवन पर्यन्त उसनें पति में प्रेमी से अधिक पिता की परछाईं ही देखी है । अब उसकी दिली इच्छा थी कि पति के सेवानिवृत्त होने पर अपना शेष जीवन बच्चों के साथ हंसी - खुशी व्यतीत करें ।
परन्तु यह क्या ? यहां भी उसकी सारी अकान्क्षाओं को दरकिनार करते हुऐ जतिन ने अपना इकतरफा फैसला सुना दिया " हम अपने इसी घर में रहेंगे " ।
दीपा भी ना नहीं कर पाई ।
बच्चों ने भी सारी फैमिली एक साथ रहने के लिए हल्के ढंग से ज़िद की। फिर शांत हो गये ।
खैर एक बार बड़े बेटे के पास वे दोनों हैदराबाद गये। वहां बच्चों के पास दो महीने रहे। पोता पोती के बीच दीपा बहुत खुश थी । उसका दिल लग गया था कि अचानक एक दिन जतिन ने घर वापसी की इच्छा जाहिर कर दी ।
पति की बात सुन कर दीपा का मन मुरझाने लगा है ।
फिर यह सोच कर कि हर इच्छा की पूर्ति शायद संभव नहीं । वैसे तो उसे भी अपने घर की याद तो सता ही रही थी । भारी मन से उसने भी घर वापसी की हामी भर दी । और अपनी पैकिंग करने में जुट गई।
आज घर वापसी के लिए ट्रेन में बैठ गए थे । उदास दीपा के लिए तो आज की रात इतनी लम्बी हो रही है । मानों अनंत काल तक खत्म ही नहीं होगी ।
लेकिन यह क्या............
घर की गली में पंहुचते ही जो उदासी कल तक उसके चेहरे पर फैली थी। वह एकदम से गायब ही हो गई । उसकी जगह एक उल्लसित आभा चमक रही है। जोकि घर के नजदीक पंहुच कर और भी सुंदर लग रही है। इस जगह से मानों हमारा जन्मों का नाता है ।
पति द्वारा मेहनत की कमाई से बनवाया हुआ उसका अपना घर उसके बिना कितना उदास -बेहाल अवस्था में लग रहा है। ऐसे जैसे गृहस्वामिनी की ही प्रतीक्षा कर रहा हो ।
क्षण भर में दीपा के दिल से सारे गिले-शिकवे दूर हो गए और वह अपने घर की साफ सफाई में व्यस्त हो गई ।
यहां आकर जतिन भी एक विचित्र , उन्मादक , स्वाभाविक स्फूर्ति से भर उठे हैं।
सारे दिन की थकान के पश्चात फुर्सत मिलते ही संध्या काल में जब उसने पति के कंधे पर सिर रखा तो अपने आप को एक विचित्र सुखद अहसास से घिरा हुआ पाया ।
जतिन धीरे से बोले ! दीपा, "बगैर बच्चों के यह हमारे जीवन की दूसरी पारी है।, अपने अकेलेपन को हमें नयी उर्जा के साथ उमंग और खुशियों की प्राण वायु से भरना ही होगा । यह कहते हुए जतिन ने उसे दोनों बाजुओं में भर लिया।
" सच में कितना सुकून, कितनी शांति, कितनी सुखद अनुभूति है पति के इस रूप के दर्शन में ।"
और फिर दीपा ये गुनगुना उठी " ये मेरे पिया का घर है और मैं रानी हूँ इसकी .........।"
बागीचे में लगे पौधों के इर्द-गिर्द मानो बहुत सारे भंवरे गुनगुना रहे हैं ..........
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