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एक खुशी ऐसी भी - Entrance Exam ki Moral Story In Hindi - Storykunj



सुनिधि...... ओ सुनिधि..... अरे कल तो तुम्हारा B.Ed का एंट्रेंस एग्जाम है ना। सासु मां ने पूजा के लिए रुई की बत्ती बनाते हुए पूछा? 

'हां मां' लेकिन मैं यह एग्जाम देने कैसे जा सकती हूं? किचन में खाना बनाते हुए सुनिधि ने जवाब दिया। 

 मां बोली! देखो बेटा टीचर बनना गर्व की बात है। और तुम्हारा सपना भी है।  मैं तो यही कहूंगी कि तुम एग्जाम देने जाओ। 

 हां सुनिधि ! मां ठीक कह रही हैं। और फिर तुमने तो अच्छी तैयारी भी की है।  पति आकाश बोले। 
 
आकाश मैं भी एग्जाम देने जाना चाहती हूं।  लेकिन मुन्ना अभी बहुत छोटा है। अभी सिर्फ तीन ही महीने का तो है।  मैं मुन्ना को एक मिनट के लिए भी छोड़ना नहीं चाहती हूं।  सुनिधि ने अपनी असमर्थता जताई। 

'हां' लेकिन मां तो है। मुन्ना को वह तुमसे बेहतर संभाल लेंगी। तुम चिंता मत करो। आकाश ने सुनिधि को समझाया। 
 
आकाश और मां के समझाने पर सुनिधि एग्जाम देने को राजी तो हो गई, पर एग्जाम सेंटर दूर था। और रास्ता भी अनजान। 

 एग्जाम के दिन सुबह-सुबह ही सुनिधि पति के साथ घर से निकल गई। और सेंटर में समय से एक घंटा पहले पहुंच गई।  वहां पर परीक्षार्थियों का हुजूम था। सुनिधि पति के साथ बाहर खड़ी होकर प्रतीक्षा करती रही। और पल-पल अपने बेटे को याद करके  रूआंसी भी होती रही। 

 पहली पाली की परीक्षा हो चुकी थी।  और सुनिधि परीक्षा देने के बाद सेंटर से बाहर आई। उस दिन मई की कड़ी धूप होने के कारण जान सुखी जा रही थी।  अधिकतर परीक्षार्थी दूर से आए थे।  और वहीं सड़क पर ही दूसरी पाली की परीक्षा का इंतजार करने लगे।  घर तो सुनिधि का भी दूर था। मगर उसे बरबस अपने बच्चे का मासूम चेहरा बार-बार याद आ रहा था। 

 कुछ देर सुनिधि वहीं खड़ी रही। तभी उसकी छातियों में दूध उतर आया।  उसने पति से फटाफट घर चलने को कहा। 
 
 घर पहुंची तो देखा मुन्ना भूख से बिलबिला रहा था। मां बोली सुनिधि मुन्ना तो बोतल को मुंह भी नहीं लगा रहा। 

 मुन्ने को देखकर सुनिधि की आंखों में आंसू आ गए। सुनिधि ने मन ही मन ईश्वर से कहा 'प्रभु यह कैसी परीक्षा है।' फटाफट उसे दूध पिलाया और फौरन वहां से फिर से पति के साथ सेंटर पहुंची।  तो परीक्षा शुरू होने में बस दस मिनट का समय रह गया था।  और अधिकतर परीक्षार्थी अंदर जा चुके थे। 

 बाहर एक लड़का बैठा हुआ था। वह भी परीक्षा देने आया था।  पर वह अंदर नहीं जा रहा था। आकाश ने पूछा तो बड़ी मुश्किल से इतना कह पाया कि भैया मुझे चक्कर आ रहा है। 
 
जल्दी से सुनिधि और आकाश ने मिलकर उसका मुंह धूलाया और उसके सिर पर पानी डाला और उसे  पीने के लिए पानी दिया। 




 इस बीच धूप और गर्मी अपने प्रचंड रूप में आ चुकी थी। लड़का बिल्कुल सुस्त था। सुनिधि को अंदर जाने की भी जल्दी हो रही थी। 

 आकाश  बोले ! मैं इसको डॉक्टर के पास ले जाता हूं। 

' ठीक है ' तुम इसे डॉक्टर के पास ले जाओ मैं जा रही हूं। सुनिधि बोली !

 इससे पहले कि सुनिधि आगे बढ़ती। लड़का उल्टियां करने लगा। और चाह कर भी वह कदम आगे ना बढ़ा सकी। 

 आकाश ने उससे पूछा ...... 'तुम्हारा घर कहां है? '
 
उसने बताया ...... 'पिलखुआ'

 'तुम्हारे साथ कोई आया है। '......  आकाश ने फिर पूछा !
 'नहीं'....... वह बोला !

 उल्टियां करने के बाद वह नाली के पास ही बिछे हुए पत्थरों पर बेसुध सा लेट गया।  उस लड़के को इस हालत में अकेले छोड़ना उचित नहीं था। 
 
सुनिधि अब तक बहुत लेट हो चुकी थी।  घड़ी में तीन से ज्यादा का समय हो चुका था।  पता नहीं अब सुनिधि को अंदर घुसने की अनुमति मिलती भी या नहीं। 

 एक तो प्रचंड गर्मी ऊपर से उस लड़के को उल्टियां हो गई।  

आकाश बोले....  सुनिधि हम रिस्क नहीं ले सकते।  इस लड़के की जिंदगी का सवाल है। यह भी किसी का बेटा है। 

उसे किसी तरह बाइक पर बैठाकर सुनिधि और उसका पति आकाश बिना देर किए तुरंत अस्पताल ले गए। 

 अस्पताल पहुंचते ही वहां के डॉक्टर ने उसे बोतल चढ़ानी शुरू कर दी।  वह ठंडे कमरे में काफी देर तक लेटा रहा। दो-तीन घंटे बाद वह ठीक महसूस कर रहा था।  जब वह बोलने और चलने की स्थिति में आ गया।  तो उस ने घर जाने की इच्छा जताई।  

आकाश ने उसे पिलखुआ जा रही बस में बैठा दिया।  जाते-जाते उसने ढेर सारी कृतज्ञता जताई। और चला गया। अब तक काफी देर हो चुकी थी।  इतनी की दूसरी पाली की परीक्षा भी खत्म हो गई हो। 
 
सुनिधि की छातियों में फिर से दूध उतरने लगा था। सुनिधि ने पर्स से एडमिट कार्ड निकाला और फाड़ कर वहीं सड़क पर फेंक दिया।  तब तक पति आकाश ने बाइक स्टार्ट कर ली थी। 

 जीवन में पहली बार किसी परीक्षा के छूट जाने पर भी दोनों पति-पत्नी को पास हो जाने जैसी खुशी मिली थी। 

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