हमरे माथे की बिंदिया- Poetry In Hindi - Storykunj
लॉकडाउन में जब हमारा बिंदी का पत्ता
हो गया ख़त्म,
तो हमने उन्हें आवाज़ लगायी,
और बिंदी ना लगा पाने की
वजह बतलाई।
वो घबराने लगे,
भीतर ही भीतर भड़भड़ाने लगे,
कहने लगे कि कैसी पत्नी हो तुम?
एक तो बाहर करोना काल है,
जीवन पहले से ही बेहाल है,
ऊपर से तुम ये जुल्म सरेआम कर रही हो, हमें बगैर टिकट पहुँचाने का इंतजाम कर रही हो ?
पतिदेव बाथरूम में बंद हो गए,
घंटे कुछ चंद हो गए,
हमरा मन भी घबराने लगा,
BP ऊपर जाने लगा,
कि तभी दरवाज़ा खुला.....
उनके चेहरे पे हंसी थी,
बिंदी की जीवन में गंभीरता बड़ी थी,
कहने लगे माफ करना
हम बेवज़ह ही बिचके थे,
हम तो बाथरूम की दीवार पे
जगह-जगह चिपके थे।
देखो ना जाने कहाँ - कहाँ से खुद को हटाया है
और ये बिंदी का नया पत्ता
सिर्फ तुम्हारे लिए बनाया है
चलो हर दिन की तरह
हमारा जीवन बचा लो,
सांस भारी हो रही है,
अब जल्दी से इसे अपने माथे पर लगा लो।
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