कामयाबी की उड़ान - Success Story In Hindi - Storykunj
यह कहानी है नीट 2020 में कामयाब होने वाले एक स्टूडेंट की। उनका नाम मुराद अली है।
मुराद लखीमपुर खीरी के गोला स्थित कोटवारा गांव के निवासी हैं।
मुराद के गांव में चार से पांच किलोमीटर तक कोई मेडिकल फैसिलिटी नहीं है। ना ही कोई प्राइवेट क्लीनिक है।
जब मुराद इंटरमीडिएट की पढ़ाई कर रहे थे। तब उनकी दादी को ब्रेन हेमरेज हो गया था। तब वे उन्हें लेकर अपने गांव से पांच किलोमीटर दूर गोला पहुंचे। जहां से उन्हें डॉक्टरों ने लखीमपुर के लिए रेफर कर दिया। फिर वे वहां से लखीमपुर के लिए निकले। लेकिन मुराद की दादी ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया।
कोटवारा गांव के निवासी पूरे गांव में कोई भी मेडिकल फैसिलिटी नहीं होने से बेहद परेशान हैं। ऐसे में किसी खास मकसद के लिए तैयारी करने वाले मुराद अली का रास्ता गरीबी और कई तरह की अड़चनें भी नहीं रोक सकी।
मुराद अली के पिता जाबिर अली का एक ही सपना है कि उनका बेटा पढ़ लिख कर गांव वालों की सेवा करें।
पिता जाबिर अली स्वयं भी चार भाई और दो बहने हैं। गन्ने की खेती करके गुजर-बसर करने वाले जाबिर अली की एक एकड़ की जमीन है। जिस पर वे खेती करते हैं। छोटी बेटी सानिया अभी नौवीं कक्षा में पढ़ रही है। जाबीर की जिम्मेदारी सिर्फ उनके बच्चे ही नहीं बल्कि वह खुद भी छ: भाई- बहन है। जिसमें से दो भाई और एक बहन की जिम्मेदारी भी उनके कंधों पर है। जिनकी उन्हें शादी भी करवानी है। जाबिर के एक भाई ट्रैक्टर के मिस्त्री हैं। एक भाई अशरफ अली अस्पताल में कंपाउंडर हैं।
मुराद के पिता का कहना है कि सब की शादी के पैसे जोड़ने के साथ ही किसी तरह उन्होंने मुराद की पढ़ाई व रहने का खर्चा भी जोड़ा। अभी आगे भी मेडिकल की पढ़ाई के लिए पैसे जोड़ने हैं। जिसके लिए जितनी मेहनत हो सकेगी मैं करूंगा।
मुराद अली ने अपने चाचा और चचेरे भाई के साथ रहकर लखनऊ में कोचिंग की। और चाचा को इंटर्नशिप में जो पैसा मिलता था उससे वे खर्चा निकालते थे। पापा जो पैसे भेजते थे, उस से काम चलता था।
मुराद के पिता ने खेतों में पसीना बहाया। घर के खर्चे कम किए। आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के बावजूद तंगी में उन्होंने अपने बेटे को डॉक्टर बनाने का सपना देखा। खुद गरीबी में जीवन यापन किया। लेकिन बेटे की पढ़ाई में कमी नहीं आने दी। कई तरह की अड़चनों के बाद पिता ने बेटे को नीट में कामयाबी दिलाई।
मुराद आगे चलकर हार्ट सर्जन बनना चाहते हैं। वह कहते हैं कि चाहे जहां भी काम करूं। लेकिन अपने गांव में चैरिटी के लिए लोगों का इलाज जरूर करूंगा।
लखनऊ में कोचिंग की फीस देने के लिए उनके पास ₹100000 नहीं थे। कोचिंग संस्थान ने भी उनकी आर्थिक स्थिति को समझा और ₹12000 साल भर की फीस ली।
अगर ऊंची उड़ान भरने का हौसला और लगन हो तो मंजिल मिल ही जाती है। जिस प्रकार परेशानियों को झेल कर मुराद अली ने नीट में 2329 रैंक हासिल की। और डॉक्टर बनने की राह बनी । गरीबी, अभाव और कई तरह की रुकावटें भी इनका रास्ता नहीं रोक सकी।
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