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जीवन बहता पानी - Short Story In Hindi - Storykunj


लघु कथा

विपुल एक खुशमिजाज बालक था।  इसबार वह  आठवीं की परीक्षा में फेल हो गया।  विपुल के सभी साथी पास हो गए थे।  क्योंकि अब विपुल को पिछली कक्षा के बच्चों के साथ पढ़ना था। इससे विपुल के दोस्तों ने उसका बहुत मजाक उड़ाया।  

अपने दोस्तों के सामने शर्मिंदगी की वजह से विपुल को गहरा सदमा पहुंचा।  और धीमे-धीमे वह तनावग्रस्त होने लगा। उसने पढ़ना-लिखना और यहां तक कि सही से खाना पीना भी छोड़ दिया। अब विपुल का तनाव इतना बढ़ गया था कि वह एक कोने में गुमसुम बैठा रहता।  

विपुल के माता-पिता ने उसे प्यार से बहुत समझाया कि एक बार फेल होना कोई इतनी बड़ी असफलता नहीं है। जिससे तुम इस तरह परेशान हो जाओ। 
 
विपुल की मां बेटे की हालत को देखकर बहुत चिंता करने लगी।  वह विपुल को समझाती थी। बेटा ! आखिर ऐसा कब तक चलेगा?  जो हुआ उसे भूल जाओ और आगे की सोचो। 

 किंतु विपुल को माता-पिता की बातों से संतुष्टि नहीं मिली। मानसिक अशांति और निराशा में उसे कुछ नहीं सूझा। तो वह एक रात आत्महत्या करने निकल पड़ा। 

 रास्ते में उसे एक सनातन धर्मशाला मिली। धर्मशाला से कुछ आवाजें आ रही थी।  विपुल उत्सुकता वश उन आवाजों को सुनने के लिए धर्मशाला में चला गया।  वहां एक साधु महाराज अपने भक्तों को उपदेश दे रहे थे। 

'पानी मेला क्यों नहीं होता? क्योंकि वह बहता रहता है। 

 पानी के मार्ग में बाधाएं क्यों नहीं आती?  क्योंकि पानी बहता रहता है। 

पानी की एक बूंद झरने से नदी,  नदी से महानदी और महानदी से समुंद्र क्यों बन जाती है?  क्योंकि वह बहता रहता है। 
 
इसलिए जीवन को तुम रोको मत,  बहने दो।' 
 
साधु महाराज बोल रहे थे।  जीवन में कुछ असफलताएं आती हैं।  लेकिन तुम उनसे घबराओ मत। उन्हें लांघ कर दोबारा मेहनत करते हुए आगे बढ़ो। बहना और चलना ही जीवन है। एक भी असफलता से घबराकर अगर रुक गए। तो तुम उसी तरह सड़ जाओगे।  जिस तरह एक स्थान पर रुका हुआ पानी सड़ जाता है। 





 विपुल को यह बातें बहुत अच्छी लगी।  अब उसका खोया हुआ आत्मविश्वास फिर से लौटने लगा।  उसने अपने मन में ठान लिया कि अब वह निराश नहीं होगा।  और अपने जीवन में आगे बढ़ेगा।  और अपने व माता-पिता के सपने पूरे करेगा। 

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