संस्कार - Short Story In Hindi - Storykunj
लघु कथा
गली-मोहल्ले में घर के काम से निपट कर हंसी मजाक और एक दूसरे के घर की चर्चा करने के लिए आस-पड़ोस की महिलाओं के बीच खूब बैठके जमती थी। लेकिन लॉकडाउन के बाद से उनकी बैठके घरों की छतों पर ही सिमट गई है।
आज जैसे ही सुषमा अपने घर की छत पर पहुंची। सामने की छत में अपनी सहेली पड़ोसन को देखकर वह मुस्कुरा दी।
सुषमा ने पूछा "नीलम तुम्हारी स्वाति की तो आजकल ऑनलाइन क्लास चल रही होंगी? "
नीलम ने कहा - "हां, यार वह तो चल रही हैं। " और तुम सुनाओ....भाई साहब तो आजकल work-from-home कर रहे होंगे।
हां, यार जब तक सब कुछ ठीक नहीं हो जाता work-from-home ही चलेगा। सुषमा ने जवाब दिया
पड़ोस की छतों पर से आ रही आवाज सुनकर साइड के घर से विनीता भी अपने घर की छत पर पहुंच गई। तीनों सहेलियां बहुत दिनों बाद एक दूसरे से बात करके बहुत खुश थी।
आज तीनों पड़ोसनो के बीच गली मोहल्ले में लड़कियों के साथ जो हादसे हो रहे हैं। उस पर चर्चा होने लगी थी।
नीलम ने कहा :- बाकी सब तो ठीक है। पर यह गली-गली में लड़कियों के साथ जो हादसे हो रहे हैं। उन्हें सोच-सोच कर तो मेरी नींद ही उड़ गई है। सरकार भी कुछ नहीं करती।
"हादसे तो सच में दिल दहलाने वाले हैं ।"... विनीता बोली।
"अरे यार ...पर तुझे क्या......तेरे दोनों बेटे हैं...कब आओगे?, कहाँ जा रहे हो? किसके साथ जा रहे हो? ये सब पूछने का तुझे तो कोई टेंशन ही नहीं।"- नीलम कुछ बेचारगी से बोली।
"नही नीलम इस मामले में तुम कुछ गलतफहमी में हो।" सुषमा ने दृढ़ स्वर में कहा।
हमें बेटों की तरफ भी उतना ही ध्यान देना होता है जितना कि बेटियों की तरफ।
"बेटों की भी, 'कहाँ जा रहे हैं?' 'क्यों जा रहे हैं?' 'किसके साथ हैं?'...इन सभी बातों पर अगर हम बेटियों की तरह उसी ज़िम्मेदारी से ध्यान रखें तो ऐसी घटनाओं पर लगाम लगाई जा सकती है।
माफ करना तुम्हे लग रहा होगा कि मैं प्रवचन दे रही हूँ। पर ये सोलह आने सच है कि ये सरकार का नहीं, बल्कि बच्चों को दिए जाने वाले संस्कार का मामला है जो हम एक पक्ष को देने की जरूरत नहीं समझते हैं..... ।"
विनीता ने अचानक बैचैनी से बातों का पहलू बदला । उसे याद आया कि उसका बेटा भी सुबह नौ बजे से गया है। अभी दोपहर के दो बजने को हैं।
सुषमा की बात सुनते-सुनते ही उसकी नजरें अपना मोबाइल तलाशने लगी थी।
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