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क्षमा और प्रेम - Moral Story In Hindi - Storykunj

 क्षमा का गुण आते ही अपने अंदर प्रेम का अंकुर फूटता है।  जब आप किसी को माफ करते हैं तब आपकी मनो स्थिति में कितना बदलाव आ जाता है यह स्टोरी इसी पर आधारित है। 

 सोहनलाल के दामाद को व्यापार के लिए रुपयो की जरूरत थी। तो सोहनलाल ने अपने दामाद को तीन लाख रूपये व्यापार के लिये दे दिये। दामाद का व्यापार बहुत अच्छा जम गया लेकिन उसने रूपये ससुर जी को नहीं लौटाये।
         
कई बार मांगने पर भी जब रुपए नहीं लौटाए तो आखिर दोनों में झगड़ा हो गया। झगड़ा इस हद तक बढ़ गया कि दोनों का एक दूसरे के यहाँ आना जाना बिल्कुल बंद हो गया। दोनों एक दूसरे से नफरत करने लगे। घृणा व द्वेष का आंतरिक संबंध अत्यंत गहरा हो गया। 

मजबूर होकर सोहनलाल हर समय हर संबंधी के सामने अपने दामाद की निंदा, निरादर व आलोचना करने लगे।                    
 अब  हर वक्त उन्हें दामाद का चिंतन होने लगा। मानसिक तनाव इतना बढ़ गया कि उसका प्रभाव तन पर भी पड़ने लगा। बेचैनी बढ़ गयी। लेकिन कोई समाधान नहीं मिल रहा था। आखिर वे एक संत के पास गये और अपनी व्यथा उन संत को  सुनायी।

 सोहन लाल की व्यथा सुनने के बाद संतश्री ने कहाः- 'बेटा ! तू बिल्कुल चिंता मत कर भगवान की कृपा से सब ठीक हो जायेगा। बस तुम एक छोटा सा काम करना।  तुम कुछ फल -फ्रूट व मिठाइयाँ लेकर अपने बेटी- दामाद के यहाँ जाना और उनसे मिलते ही सिर्फ इतनी सी बात कहना...... 

बेटा ! 'सारी भूल मुझसे हुई है, और मुझे क्षमा कर दो।'

 सोहनलाल बोले ! "महाराज ! मैंने ही उनकी मदद की है और क्षमा भी मैं ही माँगू !"

 इस पर संतश्री ने जवाब दियाः- "परिवार में ऐसा कोई भी संघर्ष नहीं हो सकता, जिसमें दोनों पक्षों की गलती न हो। चाहे एक पक्ष की भूल एक प्रतिशत ही क्यों ना हो दूसरे पक्ष की निन्यानवे प्रतिशत, पर भूल तो भूल है।  दोनों तरफ से होगी।"

 संत श्री की बातें सोहनलाल की समझ से बाहर थी उन्हें कुछ नहीं आ रहा था। उसने कहाः- "महाराज ! मुझसे ऐसी क्या भूल हुई ?"
    
  "बेटा ! तुमने मन ही मन अपने दामाद को बुरा समझा यह तुम्हारी भूल ही तो है। तुमने उसकी निंदा, आलोचना व तिरस्कार किया – यह है तुम्हारी दूसरी भूल। क्रोध पूर्ण आँखों से उसके दोषों को देखा – यह है तुम्हारी तीसरी भूल। अपने कानों से उसकी निंदा सुनी – यह है तुम्हारी चौथी भूल। तुम्हारे हृदय में दामाद के प्रति क्रोध व घृणा है – यह है तुम्हारी आखिरी भूल। अपनी इन सभी भूलों से तुमने अपने दामाद को दुःख दिया है। तुम्हारा दिया दुःख ही कई गुना हो कर तुम्हारे पास लौटा है। जाओ, अपनी भूलों के लिए क्षमा माँगों। नहीं तो तुम न चैन से जी सकोगे, न चैन से मर सकोगे। क्षमा माँगना बहुत बड़ी साधना है।"

 अब सोहनलाल की आँखें खुल गयीं। उन्होंने संतश्री को प्रणाम किया और वे दामाद के घर पहुँचे। वहां सब लोग भोजन की तैयारी में थे। उन्होंने अपने दामाद के घर का दरवाजा खटखटाया। दरवाजा उनके दोहते ने खोला। सामने नानाजी को देखकर वह अवाक् सा रह गया और खुशी से झूमकर जोर-जोर से चिल्लाने लगा ! "मम्मी ! पापा !! देखो तो कौन आये ! नानाजी आये हैं, नानाजी आये हैं...........।"

माता-पिता ने दरवाजे की तरफ देखा। सोचा, 'कहीं हम सपना तो नहीं देख रहे !' बेटी बरसों बाद पिता को अपने घर देखकर हर्ष से पुलकित हो उठी, 'अहा ! पन्द्रह वर्ष के बाद आज पिताजी घर पर आये हैं ।' प्रेम से गला रूँध गया, कुछ बोल न सकी। सोहनलाल ने फल व मिठाइयाँ टेबल पर रखीं और दोनों हाथ जोड़कर दामाद को कहा ! "बेटा ! सारी भूल मुझसे हुई है, मुझे क्षमा करो ।"

"क्षमा" शब्द निकलते ही उनके हृदय का प्रेम आंखों के आंसू बनकर बहने लगा । दामाद उनके चरणों में गिर गये और अपनी भूल के लिए हाथ जोड़कर,  रो-रोकर क्षमा याचना करने लगे। ससुरजी के प्रेमाश्रु दामाद की पीठ पर गिरने लगे और दामाद के पश्चाताप व प्रेम भरे आंसू ससुरजी के चरणों में गिरने लगे । पिता - पुत्री से और पुत्री अपने पिता से क्षमा माँगने लगी।
 सच में बरसों बाद घर में क्षमा व प्रेम का अथाह सागर फूट पड़ा।   
   



    सब के सब शांत, चुप ! सबकी आँखों से अविरल अश्रुधारा बहने लगी थी । दामाद उठे और रूपये लाकर अपने ससुरजी के सामने रख दिए। 
ससुरजी कहने लगे ! "बेटा ! आज मैं इन कौड़ियों को लेने के लिए नहीं आया हूँ। मैं अपनी भूल मिटाने, अपनी साधना को सजीव बनाने आया हूं।  और अपने गुस्से का नाश करके दिलों में प्रेम की गंगा बहाने आया हूँ ।
   
 आज मेरा आना सफल हो गया, मेरा दुःख मिट गया। अब मुझे दुनिया के सबसे बड़े आनंद का एहसास हो रहा है ।"
 
 इस पर दामाद ने कहा ! "पिताजी ! जब तक आप ये रूपये नहीं लेंगे तब तक मेरे हृदय की तपिशनहीं मिटेगी। कृपा करके आप ये रूपये रख लीजिए ।

सोहनलाल ने दामाद से रूपये लिये और अपनी मर्जी के अनुसार बेटी व नातियों में बाँट दिये । आज सब बहुत खुश थे। सब कार में बैठे, घर पहुँचे। पन्द्रह वर्ष बाद उस अर्धरात्रि में जब माँ-बेटी, भाई-बहन, ननद-भाभी व बालकों का मिलन हुआ तो ऐसा लग रहा था कि मानो साक्षात् प्रेम ही शरीर धारण किये वहाँ पहुँच गया हो।

सारा परिवार प्रेम रूपी सागर में आनंदित था। क्षमा माँगने के बाद से तो जैसे सोहनलाल के दुःख, चिंता, तनाव, भय, निराशारूपी मानसिक रोग जड़ से ही मिट गये और साधना सजीव हो उठी।

 Moral - हमें भी अपने दिल में क्षमा रखनी चाहिए। हालांकि यह एक मुश्किल काम है। लेकिन जब कर लेते हैं। तब यह अनुभूति होती हैै कि  हमने किसी और पर नहीं अपने पर ही उपकार किया है। अपने सामने छोटा हो या बडा अपनी गलती हो या ना हो क्षमा मांग लेने से सब झगडे आसानी से समाप्त हो जाते है । कोशिश तो यह होनी चाहिए कि हम किसी को शिकायत का मौका ही ना दें। वरना संबंध खोते चले जाएंगे।  और हम अकेले होने के लिए विवश हो जाएंगे।  किसी ने सही कहा है कि क्षमा प्रेम का अंतिम रूप है। 
                 

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