दुल्हन - Family Story In Hindi - Storykunj
चूल्हे पर रखे गर्म तवे से जैसे ही ओमवती ने रोटी को पलटने की कोशिश की उसके मुंह से दर्द भरी सिसकारी निकली। उंगलियां रोटी के बजाय तवे से छू गई थी। ओमवती ने जल्दी से उंगलियों को पानी में डुबोकर जलन कम करने की कोशिश की। इतने में
तवे पर रोटी भी जल गई। बेबस ओमवती ने गुस्से में अपनी लाठी उठाई और चूल्हे को छोड़कर आंगन में बिछी चारपाई पर पसर गई।
ओमवती की उम्र भी 55 - 56 वर्ष के करीब थी। उसका पति जयपाल एक छोटा किसान था । आर्थिक तंगी ज्यादा होने की वजह से वह परिवार चलाने के लिए मजदूरी भी किया करता था । दुर्भाग्यवश 15 साल पहले मिटटी से भरी ट्रॉली में दबने से जयपाल की मौत हो गई थी। अब घर की जिम्मेदारी बीस बरस के बेटे सुंदर पर आ गई।
सवा एकड़ जमीन और मजदूरी करके मां और तीन बहनों का भरण पोषण किया। तीनों बहनों की शादी करने में वह जमीन भी जाती रही। जिम्मेदारियों को निभाते निभाते सुंदर कब 34 वर्ष का हो गया पता ही नहीं चला।
ओमवती ने नाते रिश्तेदारों में सुंदर के रिश्ते की बात चलाई। मगर उम्र और गरीबी को देखकर सब ने कन्नी काट ली।
समाज वाले कहने लगे "भाई जमीन तो है नहीं, उम्र भी 35 की होने को है। ऐसे में कौन देगा अपनी बेटी"
ओमवती को आंखों से दिखना कम हो गया था। और हाथ पैर भी कब तक साथ देंगे।
ओमवती अपनी उंगलियों के पोरों को सह लाते हुए फिर से उठी और लाठी के सहारे चलकर चूल्हे के पास बैठ गई।
वह बड़बड़ाई "कमबखत मौत भी तो नहीं आती रोज - रोज मरने से अच्छा है एक ही दिन मर जाऊं" चूल्हे के पास बिछे पटरे पर बैठकर तवे से जली रोटी हटाई, फिर से रोटियां बनाने लगी।
भगवान भी क्यों बुलाएगा..... उसने तो सारे दुख मेरी ही किस्मत में लिख दिए हैं...... मत बुला.......
ओमवती ने रोटियां बनाकर कपड़े में लपेट कर रख दी। साबूत लाल मिर्च निकाली और नमक पानी डालकर चटनी पीस कर रख दी।
फिर खाट पर लेट गई। सुंदर कंधे पर फावड़ा लिए घर पहुंचा। ओमवती अभी किस्मत को कोस ही रही थी कि सुंदर मुस्कुराकर मां के पास पहुंचा
क्या अम्मा ! 'आज भी भगवान जी से शिकायत कर रही हो'
'हां' कर रही हूं शिकायत।
सुंदर समझ गया। मां की उंगलियों के पोरों में छाले उभर आए थे। देखकर सुंदर दुखी हो गया कहने लगा। मां कितनी बार कहा है। रोटियां मैं बना दिया करूंगा। कितना वक्त लगता है। थोड़ी सी रोटियों में, जला ली ना अपनी उंगलियां........
ओमवती सूबकने लगी। मां को दुखी देख सुंदर भी रोने लगा। सुंदर बोला ! अम्मा गलती भगवान की नहीं, मैं ही नालायक निकला । कोई मेरे रिश्ते के लिए तैयार नहीं। आज अगर कोई रोटी बनाने वाली होती तो तुम्हें हाथ नहीं जलाने पड़ते।
मेरा बुढ़ापा तो तेरे सहारे कट जाएगा। दो-चार साल में मैं मर जाऊंगी। पर तेरा सहारा कौन बनेगा बेटा......?
सुंदर ने रोटियां और चटनी की कटोरी उठाई और खाट के पास बैठकर अम्मा को खाना खिलाने लगा । बीच-बीच में एक हाथ से अम्मा को पानी भी पिला देता। बेटे के हाथ से रोटियां खा कर ओमवती अपना सारा दुख भूल गई और हंसते हुए बोली ! मेरे सुंदर जैसी औलाद तो किस्मत वालों को ही मिलती है। चटनी रोटी खाकर सुंदर फावड़ा लेकर निकल गया।
ओमवती ने रोज की तरह अपनी लाठी उठाई और घर से बाहर निकली। कुछ दूरी पर बबूल का बड़ा सा पेड़ था। वहां पर पेड़ के नीचे औरतें घर के काम से फ्री होकर टाइम पास और हंसी मजाक के लिए जमा हो जाती थी। उनका रोज का काम कांटेदार पेड़ के नीचे चुगल - पुराण को ताजा करना था।
ओमवती को देखते ही दो औरतों ने आगे बढ़कर ओमवती को सहारा दिया और खाट पर बिठाया और उस को सम्मान देने के लिए सभी ने उसके पैर छुए।
उनमें से एक बोली ! मांजी सुंदर चला गया क्या ?
' हां' रोटी खाने आया था, खाकर चला गया।
दूसरी बोली ! और क्या, कोई होती तो रुकता भी, मांजी के बाहर जाने का इंतजार करता।
सभी औरतें खिलखिला कर हंस पड़ी।
ओमवती ने बुरा नहीं माना। वह जानती थी। जैसी भी है, औरतें खराब नहीं है। साफ दिल की है तभी तो उस जैसी गरीब बेबस को इज्जत देती हैं।
औरतों ने ओमवती को चुप देखकर बात शुरू की। मांजी रोटी बेलने वाली चाहिए एक । किसी रिश्तेदार से कहिए रिश्ते के लिए कोई गरीब की हो।
सबसे बोल लिया.......... ओमवती ने बात अधूरी छोड़ दी।
मांजी आपका बेटा श्रवण कुमार है। इतनी उम्र हो गई। कभी किसी की बहू- बेटी को नजर उठा कर नहीं देखा। अपने मोहल्ले में उस शांति के छोरे हरीश को देखो कई बार तो मोहल्ले वालों से पिट चुका है । 48 बरस का है। अपनी जात वालों ने नहीं दी, तो कुजात वाली को ही ले आया। सुना है अच्छी खासी कीमत देकर खरीदी है। बड़ी उम्र की लगती है। बाप ने ही बेच दी।
"तुमने कब देखी"....?
कुएं से पानी भरने गई थी। रास्ते में देखा तो ढोल बजवाते हुए घर ले जा रहा था। अरे रघु ने ही तो जुगाड़ किया है हरीश के लिए।
" चलो राम मिलाई जोड़ी बन गई "
सभी खिलखिला कर हंसने लगी।
औरतों की बातें शरारती होने लगी थी। ओमवती उठकर लाठी टेकते हुए घर आ गई, मन में बेचैनी हो रही थी। कुछ सोच विचार करने के बाद वह घर की कच्ची कोठरी में घुसी और खुरपी से एक कोने को खोदने लगी। करीब डेढ़ हाथ नीचे गड्ढे से एक पोटली निकाली और गड्ढा भर दिया।
पोटली को छप्पर में खोसकर वह खटिया पर लेट गई। सुंदर का काम से लौटकर आने का वक्त हो चुका था मगर ओमवती ने रात की रोटियां नहीं बनाई।
सुंदर पहुंचा, फावड़ा कोने में रखा और चूहे को उदास देख कर बोला !
अम्मा आज रोटी नहीं बनाई क्या ?
ओमवती उठी और वह पोटली लाकर सुंदर के हाथ में थमा दी।
अम्मा यह क्या है ?
इसमें चांदी के जेवर है। मैंने बहू के लिए बचा कर रखे थे। इन्हें बेचकर बहू ले आ।
सुंदर हंसते हुए बोला ! अम्मा पगला गई हो क्या, बहू कोई बाजार में बिकती है जो ले आऊं।
'हां बिकती है' उस पार मोहल्ले का हरीश लेकर आया है आज पैसा देकर , तुम भी ले आओ।
अम्मा गांव में थू- थू हो जाएगी। नाते रिश्तेदार सब क्या कहेंगे। सब आना - जाना बंद कर देंगे।
क्यों होगी थू - थू ?
इतनी ही चिंता है नाते रिश्तेदारों को तो क्यों नहीं करा देते तुम्हारा ब्याह । किसी ने पूछा है आज तक तुझसे।
मरते - मरते उंगलियां जलाऊं मैं, जीते जी सुख नहीं देखा, बिना पोता- पोती का मुंह देखे, मारना चाहता है। मुझे ओमवती फफक कर रो पड़ी।
अम्मा के आंसू सुंदर से नहीं देखे गए। रूआसी आवाज में बोला अम्मा ! रो मत, तू जैसा कहेगी वैसा ही करूंगा।
तेरे सिवाय मेरा है ही कौन दुनिया में, अब चुप हो जा।
सुंदर की बात सुनकर ओमवती के आंसू थम गए। वह ऐसे खुश हुई जैसे बेटे की सगाई पक्की हो गई हो, जैसे बहू आने ही वाली हैं, ओमवती की खुशियों को पंख लग गए । पूरी उमंग के साथ उठी और झटपट खाना बनाया।
सुबह होते ही सुंदर साइकिल लेकर बाजार गया । वापस लौटकर उसने मां के हाथ पर तेरह हजार रुपए रख दिए।
ओमवती ने पूछा? 'बस इतने ही'
अम्मा चांदी का भाव ही क्या है सुनार ने काटकर इतने ही दिए।
इतने में बहू कैसे आएगी ?
मैं क्या जानू ? तुमने कहा तो बेच आया । अब मैं नहीं जानता।
ओमवती बोली ! तू रघु से बात कर कोई ना कोई रास्ता निकल आएगा।
ओमवती की आंखों में पनप रहे सपने मुरझाने लगे। गरीबी की खाई में उसकी हसरतें फिसलती और मरती रही हैं। गरीबी ना होती तो सुंदर के पिता मिट्टी में दबकर क्यों मरते। सुंदर अपनी उम्मीदों को क्यों दफन करता। झोपड़ी में मायूसी ना होती। दादी कहने वाली तोतली आवाज गूंजती। गरीबी ने सब उम्मीदें खत्म कर दी थी। गरीबी एक बार फिर सपने के आकार लेने से पहले ही रोड़ा बन गई।
सुंदर खुद की किस्मत को कोस रहा था । अम्मा को बुढ़ापे में सुख ना दे सका तेरह हजार में भैंस नहीं आती बहू कहां से आएगी।
उम्मीद तो नहीं थी। लेकिन अम्मा की जिद की खातिर सुंदर रघु के घर पहुंचा। कुंडी खटखटाई। रघु लंगड़ाते हुए बाहर निकला और पूछने लगा। सुंदर तुम यहां कैसे?
बस ऐसे ही भैया......
आओ बैठो......
काफी देर तक इधर-उधर की बातें करने के बाद भी सुंदर के मुंह से असली बात नहीं निकली।
रघु ने मसला भाप लिया।
बोला सुंदर तुम्हारे ब्याह का क्या हुआ? कुछ बात बनी।
नहीं भैया, इसी आस से आपके पास आया हूं।
आस से...........? मतलब........
भैया जैसे हरीश को औरत दिलाई वैसे मुझ पर भी मेहरबानी कर देते............
रघु को झटका लगा। वह गुस्से में बोला सुंदर तुम क्या समझते हो मुझे, मैं औरतों की दलाली करता हूं क्या?
अरे नहीं भैया ! मुझ पर यह पाप ना चढ़ाओ। किसी का घर बसाना पुण्य का काम है। स्वार्थ की दुनिया में आप भगवान से कम नहीं है। भगवान से तुलना होते ही रघु का गुस्सा हवा हो गया। वह गर्व के साथ बोला वह सब ठीक है सुंदर, पर कोई बाप अपनी बेटी यूं ही नहीं देता। उसकी दस मजबूरी और बेबसी होती है। उसके बदले पैसा लेता है।
कितने पैसे लेगा भैया..........?
अब यह तो वही बता सकता है कितने लेगा ? चालीस हजार या पचास हजार ।
भईया मेरे पास इतने पैसे कहां है । सोचा था, तुम्हारी कृपा से घर बस जायेगा।
कितने हैं तुम्हारे पास ?
मेरी हालत आप से छुपी थोड़े ही है 10,000 हैं।
देखो सुंदर ! अम्मा के बुढ़ापे की खातिर मैं किराए - विराय का खर्चा छोड़ भी दूं तो भी 25, 000 से कम में बात नहीं बनेगी। सोच लो।
भैया ! अम्मा की खुशी की खातिर ही तो बहू चाहिए। मरते -मरते अच्छे दिन देख लेगी।
रघु कुछ देर मौन रहने के बाद सोच कर बोला। अम्मा की खुशी की बात है तो एक काम कर सकता हूं। जिंदगी भर के लिए ना सही कुछ सालों के लिए खरीद लो । 5 साल के लिए उधार दिला दूंगा । अम्मा इससे ज्यादा जिएगी नहीं।
सुंदर को झटका लगा, कुछ साल के लिए। मैं तो जीवन भर किसी की बेटी को सम्मान पूर्ण जीवन देना चाहता हूं।
सुंदर चिंता में डूब गया फैसला कठिन था। मन तो हुआ कि मना कर दे। मगर तभी अम्मा के चेहरे पर तैरती मुस्कान याद आ गई।
भैया अगर मैं 5 साल बाद पूरा पैसा दे दूं तो......
फिर तुम्हारी , अगर नहीं दे पाए तो, वह रुकेगी नहीं...... सोच लो।
ठीक है भैया...... पर अम्मा को मत बताना कि सिर्फ 5 साल के लिए है दुखी हो जाएगी।
बात पक्की हो गई। दूसरे दिन सुंदर ने ₹10,000 रघु को दिए। और रघु वादे के मुताबिक 10 दिन बाद 30 - 32 साल की औरत अपने घर ले आया।
खबर पाकर सुंदर अम्मा के साथ रघु के घर पहुंचा।
हाव भाव से मजबूर और सहमी सी नजर आती थी। नाम था सरिता। अम्मा तो देखते ही निहाल हो गई। खूब प्यार किया। उसी शाम बढ़िया साड़ी, शॉल, सैंडल, और सजने- संवरने की चीजों का बॉक्स लेकर दे दिया।
सुंदर दूल्हा बना और गाजे-बाजे के साथ सरिता को दुल्हन बनाकर अपने घर ले आया। गांव में हल्ला मच गया। और थू - थू होने लगी। यहां तक कि सुंदर के गांव में बहिष्कार की ही बातें होने लगी। सब ने सुंदर को कोसना शुरू कर दिया। पास -पड़ोस के लोगों ने तो रिश्ता खत्म कर लिया। परंतु अम्मा के घर बरसों बाद खुशी आई थी। उसके पैर जमीन पर नहीं पड़ते थे। सबसे बेखबर अम्मा की खुशी का ठिकाना नहीं था।
दूसरे ही दिन से सरिता ने चौका चूल्हा संभाल लिया। जितना सोचा था सरिता उससे भी ज्यादा अच्छी निकली। पानी भरकर लाती, कपड़े धोती और यहां तक की सोने से पहले अम्मा के पैर दबाती। सरिता ने पूरे घर को बहुत अच्छे से व्यवस्थित कर दिया। सरिता के आने से घर स्वर्ग बन गया था। कुल मिलाकर हर तरीके से सरिता सुशील धर्मपत्नी साबित हुई। वक्त पंख लगा कर उड़ने लगा।
डेढ़ वर्ष बाद सरिता ने बेटे को जन्म दिया। सुंदर की सुनी जिंदगी में बहार आ गई और अम्मा को खिलौना मिल गया था। अब तो अम्मा की रंगत ही बदल गई। दिनभर पोते के साथ खेलती और हंसते हुए कहती। अब तो इसका ब्याह देखकर ही मरूंगी।
दुखों के सागर में सुखो का टापू मिल गया। सुंदर मजदूरी से फुर्सत मिलते ही घर पहुंचता। सरिता कंधे से फावड़ा लेकर रख देती। पानी देती, प्यार से खाना खिलाती, सुंदर बुरे दिन भूल गया। सरिता बोलती कम थी। बच्चे की उछल कूद ने घर को खुशियों का आंगन बना दिया था। घर में प्यार और सुख की महक बस गई। देखते ही देखते चार साल बीत गए। सरिता से बिछड़ने का साल शुरू हो गया। सुंदर उदास रहने लगा। खूब मेहनत करने के बाद भी वह चंद हजार रुपए नहीं जुटा सका। एक-एक दिन बीत रहा था। मजदूरी से जो मिलता। वह चार सदस्यों का पेट पालने में ही खत्म हो जाता था। जैसे-जैसे वक्त बीत रहा था। सुंदर की बेचैनी भी बढ़ रही थी। गांव भर में काम तलाश करता रहता। जी तोड़ मेहनत करने के कारण सूखकर कांटा हो गया। शरीर जवाब दे रहा था। बीमार हुआ, मगर काम पर जाता रहा। 10 महीने बीत गए। 2 महीने ही बचे थे। एक दिन अचानक आकर रघु सामने खड़ा हो गया और धमकी भरे अंदाज में बोला सुंदर ! 2 महीने बचे हैं, पैसे देते हो या...........
सुंदर ने फावड़ा तान दिया और गुस्से में बिफरकर बोला।
खबरदार जो ऐसी बात की...... सरिता मेरी जिंदगी है, मेरी सांस है, कोई अलग नहीं कर सकता। आइंदा ऐसी बात ना करना।
रघु तो घुटा हुआ शातिर था। वह कमजोर की नब्ज दबाना जानता था। गुस्से से बोला सुंदर !औकात में रहना, तुम जैसे चार पति खड़े हो जाएंगे सरिता के, उसका पिता और पूरी बेड़ियों की बिरादरी हंगामा कर देगी, जेल हो जाएगी तुम्हें, बीबी के चक्कर में, अपने बेटे को भी खो दोगे। अम्मा जीते जी मर जाएगी।
सुंदर उल्टे पांव घर की ओर लोटा और रुपयों का बक्सा खोलकर रुपए गिने तो बहुत कम थे । रघु अब 30,000 मांगने लगा था। सुंदर फूट-फूट कर रोने लगा। आवाज सुनकर अम्मा और सरिता दोड़ी आई।
पूछने लगी क्या हुआ सुंदर?
सुंदर रोए जा रहा था। सरिता एक तरफ खड़ी सब देख रही थी। हमेशा की तरह खामोश, चिंतित और सहमी हुई। सरिता ने सुंदर के चेहरे पर उभरे हुए दर्द को महसूस कर लिया।
सुंदर ने सरिता की भीगी हुई आंखों को देखा। अम्मा माजरा समझ ना पाई। दुख और बेचैनी में सुबह से शाम हो गई। उम्मीद की कोई किरण नजर नहीं आई। सुंदर रोते- रोते सो गया।
अचानक आधी रात में सोते - सोते सुंदर चीखने लगा। रुक जाओ........ रुक जाओ....... मेरी सरिता को मत लेकर जाओ....... मैं इसके बिना जिंदा नहीं रह सकता....... हड़बड़ा कर सरिता उठी। अम्मा दौड़ी आई। बच्चा सहम गया। अम्मा बोली क्या हुआ बहू ? यह चीख क्यों रहा है?
सरिता हमेशा की तरह खामोश, बेचैन और चिंतित......
अम्मा इन सब बातों से अनजान थी, नहीं समझ सकी।
अब सिर्फ 3 दिन बाकी थे। सुंदर ने किस्मत के आगे हार मान ली। उसकी हालत पागलों जैसी हो गई। बस एकटक अपनी सरिता को घूरता रहता। सरिता सुंदर से नजरें चुरा कर खुद को व्यस्त रखती। बिछड़ने की बेला आ पहुंची। आज आखरी शाम थी। सुंदर ने 3 दिन से मुंह में निवाला तक नहीं लिया था ।
सरिता ने अम्मा के काफी देर तक पैर दबाए। बेटे को सीने से लगाकर खूब प्यार किया। बेटे को अम्मा के पास लिटा कर सुंदर के पास पहुंची। और सुंदर के सीने से लग गई। दोनों के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। सरिता पहली दफा फूट पड़ी। और दोनों हाथों से कसकर सुंदर को पकड़ कर बोली।
"मुझे बचा लीजिए, मैं तुम्हें छोड़कर जाना नहीं चाहती, मुझे अपने बेटे और अम्मा से अलग मत होने दो"
दोनों फूट-फूट कर रोए । रोते-रोते सुबह हो गई। पंछियों की मधुर आवाज फिजाओं में गूंजी। सुंदर ने सरिता का हाथ पकड़कर कहा तुम्हें मुझसे कोई अलग नहीं कर सकता। भगवान भी नहीं। इतना कहकर सुबह 5:00 बजे ही बाहर निकल गया। सरिता की हालत बिल्कुल ऐसी सुहागन की थी जिसे कुछ देर में विधवा का आभास हो चुका था। उसे एहसास था कि शाम को किसी भी वक्त उसके विदाई हो जाएगी और उसे सुंदर से अलग कर दिया जाएगा।
दोपहर 3:00 बजे सुंदर मिठाई के डिब्बे के साथ घर लोटा और खुश होता हुआ बोला, सरिता ! अब यह उदासी छोड़ो, अब कोई तुम्हें मुझसे, मेरे बच्चे से अलग नहीं कर सकता। रघु के मुंह पर पूरी रकम मार कर आया हूं।
इतने पैसे........?
'हां' अब कोई चिंता नहीं, खुद को 2 साल के लिए गिरवी रख दिया मैंने। पहलवान चौधरी के यहां 32,000 में 2 साल मजदूरी करूंगा। सुंदर ने खुश होते हुए बताया।
सरिता सिहर गई। यह तुमने क्या किया। घर कैसे चलेगा?
वह मुझे नहीं पता। खुद को गिरवी रखने से ज्यादा कीमती मेरे लिए तुम हो।
लेकिन रोजी - रोटी का इंतजाम.........?
लंबी खामोशी के बाद सरिता पहली बार चहकी, मुस्कुराई और सुंदर के गले लग गई बोली ! तुमने मुझे नर्क में जाने से बचा लिया। मेरा आंचल खुशियों से भर दिया। औरत होने का सच्चा सुख दिया है तुमने। मेरी उधार की खुशियों के लिए तुमने खुद को गिरवी रखा। अब तुम्हें मुक्ति दिलाने का हक मुझे दे दो.......
और सरिता ने सुंदर का फावड़ा अब अपने कंधे पर रख लिया ।
Very good
ReplyDeleteVery good
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