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आधा किलो आटा - Short Story In Hindi - Storykunj


उत्तर प्रदेश के बिलासपुर शहर में घनश्याम दास नाम के एक सेठ रहते थे । उनके पास धन दौलत की कोई कमी नहीं थी । सेठ जी धार्मिक और नेक दिल इंसान थे । उनके यहां काम करने वाले नौकर- चाकर भी अपने मालिक से खुश रहते थे । शहर में कोई भी बड़ा आयोजन होता तो सेठ जी उस में  बढ़-चढ़कर अपना योगदान दिया करते थे ।

 एक दिन सेठ जी को अपनी संपत्ति के मूल्य निर्धारण की इच्छा हुई। लेखा अधिकारी को तुरंत बुलवाकर सेठ ने आदेश दिया कि मेरी संपूर्ण संपत्ति का पूरा हिसाब किताब लगा कर मुझे बताइए। लेखाधिकारी ने पूरा हिसाब लगाया और ब्यौरा देते हुए सेठ से बोला, ' सेठ जी ! आपके पास इतनी संपदा है कि आपकी सात पीढ़ियां बिना कुछ किए आनंद से जी सकेंगी ।'

 सेठ जी खुश होने के बजाय  चिंता में डूब गए । 
'तो क्या मेरी आठवी पीढ़ी भूखो मरेगी? ' यह सोचकर वह रात - दिन चिंता में रहने लगे ।

 एक दिन सेठानी बोली - मैं देख रही हूं कि आप कई दिनों से बहुत चिंतित हैं।  क्या बात है? 
 सेठ जी ने पूरी बात सेठानी को बताई ।

 यह सुनकर सेठानी ने सेठ जी को अपने गुरुजी के पास जाने को कहा ।

 दूसरे दिन सेठ जी  गुरु जी के आश्रम पहुंचे और उनसे मिलकर अपनी समस्या का निदान जानना चाहा ।

 गुरुजी बोले 'इसका हल तो बड़ा आसान है |यहां बस्ती के अंतिम छोर पर एक बुढ़िया रहती है,  एकदम कंगाल। उसे मात्र आधा किलो आटा दान में दे दो । यदि वह यह दान स्वीकार कर ले, तो तुम्हारी मनोकामना पूर्ण हो जाएगी |'

 सेठ जी को यह बड़ा आसान उपाय लगा । घर पहुंचकर सेठानी से आधा किलो आटा लिया और बुढ़िया की झोपड़ी पर पहुंच कर बोले, माता जी ! मैं आपके लिए आटा लाया हूं | इसे स्वीकार कीजिए |

 'आज खाने के लिए जरूरी आटा पहले से ही मेरे पास है बेटा | कल की चिंता मैं आज क्यों करूं? जैसे कल के लिए हमेशा प्रबंध होता आया है,  वैसे ही कल भी प्रबंध हो जाएगा |'

 यह कहते हुए बुढ़िया मां ने आटा लेने से साफ इनकार कर दिया | सेठ जी वापस गुरुजी के पास पहुंचे । तो गुरुजी ने उन्हें समझाया.......

' गरीब बुढ़िया कल के भोजन की चिंता नहीं कर रही है और तेरे पास अथाह धन सामग्री होते हुए भी तू आठवीं पीढ़ी की चिंता में घुल रहा है । तेरी चिंता का कारण अभाव नहीं,   तृष्णा है । और इस तृष्णा का कोई अंत नहीं है । मन में संतोष होना चाहिए  ।  संतोष मे ही शांति व सुख निहित है ।'



 अब सेठ जी की आंखें खुल चुकी थी । और वह पहले की तरह खुश रहने लगे थे ।

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