दुखों की गठरी - Motivational Story In Hindi - Storykunj
जीवन में जब भी हम खराब दौर से गुजरते हैं तो मन में यह विचार जरूर आता है कि परमात्मा मेरी परेशानियां देखता क्यों नहीं है। मेरी परेशानियां दूर क्यों नहीं करता।
लेकिन सुख-दुख तो हमारे जीवन का हिस्सा है। जीवन है तो परेशानियां भी होंगी।
एक युवक की अपनी तमाम परेशानियों के लिए भगवान से शिकायत पर आधारित यह स्टोरी 'दुखों की गठरी' ।
नवीन अपनी परेशानियों से जूझ रहा था।
उसे लगता था कि एक अकेला वही संसार का सबसे दुखी व्यक्ति है। सिर्फ उसी के जीवन में तमाम मुसीबतें हैं
उसको भगवान से इस बात की बड़ी शिकायत रहती थी कि भगवान ने संसार के सारे दुख उसके हिस्से दे दिए। और फिर सब कुछ भूल कर कानों में रुई लगाकर सो गए हैं।
नवीन सोते-जागते भगवान से प्रार्थना करता और फिर कभी भगवान को दोष देता तो कभी खुद को कोसता रहता। भगवान हैं कि न तो विनती से सुन रहे थे और न उसके उलाहने। अब नवीन बेचारा करे भी तो क्या करे ? एक मुसीबत खत्म होती नहीं की दूसरी आ जाती।
एक दिन उसने सोने से पहले प्रार्थना की- प्रभु मैं आपके सामने कहता-कहता थक गया। अब और मिन्नतों की इच्छा नहीं है । एक अंतिम बार कह रहा हूं । कृपा करके मेरी प्रार्थना सुन लीजिए।
अगर आपको मेरे दुख नहीं मिटाने हैं तो कम से कम इतना तो कर सकते हैं कि किसी ऐसे व्यक्ति के दुखों से मेरा दुख बदल दीजिए। जिसके जीवन में मुझसे कम दुख हो। हमेशा के लिए नहीं तो कम से कुछ महीनों के लिए ही सही। थोड़े दिन के लिए मुझे भी कुछ राहत मिल जाए।
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अब भगवान ने नवीन की आखिरी इच्छा सुन ही ली और उसे उस रात सपने में भगवान दिखे।
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भगवान बोले- बालक मैं तुम्हारी प्रार्थना रोज सुनता था। पर मैं उनके ऊपर ध्यान ज्यादा दे रहा था जो तुमसे भी ज्यादा तकलीफ में है। खैर, तुम अपने सारे कष्टों को विस्तार से एक कागज पर लिखो, फिर एक गठरी बनाओ और शहर के मुख्य चौराहे पर जाकर उसे टांग कर आ जाओ।
नवीन हडबड़ाकर नींद से जागा। पहले तो उसको बिल्कुल यकीन ही न हुआ कि सच में भगवान आए थे और उन्होंने उससे यह सब बातें कही हैं। फिर सोचा कि आजमाने में क्या हर्ज है । क्या पता इससे ही कोई रास्ता निकल आए।
उसने भगवान के दिए आदेश के अनुसार अपनी सारी परेशानियां अलग-अलग कागजों पर लिखीं। इतनी परेशानियां लिख डालीं कि सच में कागज का ढेर खड़ा हो गया और उसे गठरी में ही बांधना पड़ा।
अब नवीन ने अपनी गठरी उठाई और पहुंच गया चौराहे पर। लेकिन वहां पहुंचकर चौराहे का नजारा देखकर अचंभे में पड़ गया।
उसने देखा कि चौराहे पर तो पहले से ही लोगो की लंबी लाइन लगी हुई है जो उसी की तरह अपने-अपने दुखों की बड़ी-बड़ी गठरी लिए आ पहुंचे हैं । आखिर यह चक्कर क्या है ? सब कुछ उसकी समझ से बाहर था।
अभी वह इन विचारों में ही खोया था कि तभी एक आकाशवाणी हुई। उसमें सभी को अपनी गठरी को चौराहे पर लगी अलग-अलग खूंटी में टांग देने का आदेश हुआ।
वहां बेहिसाब खूंटिंया पहले से ही बनी थी. सभी ने अपनी-अपनी गठरी टांगी और फिर ईश्वर के अगले आदेश की प्रतीक्षा करने लगे।
कुछ ही देर में दोबारा से आकाशवाणी हुई और सबसे कहा गया कि सभी लोग अंदाजे से कोई ऐसी गठरी उठा लें जो उन्हें अपनी परेशानियों की गठरी से हल्की समझ में आती हो। अब उन्हें वही दुख भोगने होंगे जो उनकी चुनी नई गठरी में दर्ज होंगे।
आकाशवाणी सुनते ही सभी हल्की से हल्की गठरी को लपकने के लिए दौड़े। सबके साथ नवीन भी नई गठरी चुनने के लिए भागा।
खूंटियों में टंगी समस्त गठरियों को घूरता हुआ वह काफी देर तक अंदाजा लगाता रहा। अब उसे एक डर और था कि कहीं वह कोई ऐसी गठरी न उठा ले जिसमें पहले से भी ज्यादा दुख हों । अगर ऐसा हुआ तो परेशानियां और बढ़ जाएंगी और मुझे लेने के देने पड़ जाएं। जीवन तहस-नहस हो जाएगा सो अलग।
अब उसके मन में तरह-तरह के विचार आने लगे। वह सोचने लगा कि कम से कम वह अपने दुखों से भली-भांति परिचित तो है। और उन्हें झेलने का आदी भी हो गया है। उनके लिए कुछ रास्ते निकालने की शुरुआत भी की है शायद उसका परिणाम आए तो एकाध दुख घट ही जाएं।
कहीं ऐसा न हो कि चुनी गई नई गठरी में दुख और भी ज्यादा पीड़ादायक हो जाएं।
ऐसे विचारों में खोया वह एक के बाद एक गठरी के सामने से गुजरता लेकिन तय नहीं कर पाया कि कौन सी गठरी चुनी जाए। उसे यह भी डर था कि कहीं कोई उसकी गठरी न उठा ले।
इसी उधेड़बुन में फंसे नवीन ने आखिरकार अपनी गठरी ही उठा ली और चल पड़ा। उसने तय किया कि वह अब इन चुनौतियों का मुकाबले पहले से ज्यादा मजबूती से करेगा।
धीरे-धीरे नवीन को अपने ही दुख दूसरों से कम होते हुए महसूस हो रहे थे। और उसके जैसे ही भाव वहां मौजूद हर व्यक्ति में आ रहे थे।
सच में सबको अपना दुख ज्यादा बड़ा और ज्यादा पीड़ादायक लगता है। लगता है कि वही संसार का सबसे दुखी प्राणी है। पर हम से भी ज्यादा न जाने कितने और दुखी हैं। कितने ही लोग ऐसे हैं जिन्हें दो वक्त का भोजन भी मुश्किल से नसीब होता है।
कभी किसी की शानदार कोठी के आगे से गुजरते हुए यदि यह ख्याल बार-बार आए कि जब किस्मत बंट रही थी तो वह इस आदमी से पीछे क्यों रहा। अगर आगे रहता तो उसे भी ऐसा सुख और ऐश्वर्य मिल जाता।
जिन लोगों के पास साहस और हौसला है वह आत्मविश्वास की नाव पर सवार होकर आसानी से जीवन की कठिनाइयों से सफलता प्राप्त कर लेते हैं। जरा ऐसे लोगों के बारे में सोचिए जो जीवन-मृत्यु के बीच झूल रहे हैं।
कम से कम आप किस्मत की लाइन में इनसे आगे तो थे। स्वस्थ हैं, अपने काम के लिए किसी पर निर्भर नहीं है। अपना काम खुद करने के काबिल है ।
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