थप्पड़ की चोट - Moral Story In Hindi - Storykunj
हेलो फ्रेंड्स Storykunj In Hindi में आपका स्वागत है। आज की कहानी है थप्पड़ की चोट। एक भटका हुआ आदमी जो वक्त का सताया हुआ और भोला है। उसके बारे में एक गांव के लोगों की कैसी प्रतिक्रिया होती हैं और उसके साथ कैसा व्यवहार करते हैं? आइए जानते हैं थप्पड़ की चोट कहानी में।
उन दिनों मम्मी लाव लश्कर के साथ बिलासपुर से बुआ के घर गई थी । बुआ का घर हमारे शहर के नजदीकी गांव में था ।
एक बार हुआ यह कि इस गांव में एक आदमी जाने कहां से भटकता हुआ आ गया । उसकी बोली - वेशभूषा सब अलग थी । वह जब किसी की बात ना समझ पाता तो हंस देता था । इसके चलते गांव के लोग उसे पगला- पगला कहकर पुकारने लगे । शुरू - शुरू में तो गांव वाले उसे भिखारी समझकर उसके सामने खाने के लिए कुछ भी रुखी - सूखी डाल देते ।
लेकिन बुआ को उस पर तरस आ गया और उन्होंने उसे अपने घर में रख लिया था । वह सुबह - शाम बुआ के साथ जाकर गाय - भैंस को चारा डालता। खेत से घास काट कर लाता और भैंसों को नहला था । फिर खुद नहाकर आंगन में खाना खाने के लिए आकर बैठ जाता । गर्मियों में बुआ नदी के किनारे रेत में ककड़ी, खीरा, नीमराना बोती तो पगला की ड्यूटी दिन- रात तपती रेत में ही रहती ।
जिस दिन हम लोग बुआ के घर पहुंचे, वह आंगन में खाना खाने के लिए बैठा हुआ था । मेरा भाई दो-तीन साल का था । वह मेरे भाई को पुचकारने लगा । उसके कपड़े मेले- कुचेले थे । नहाने के बाद भी उसके पैरों में गंदगी जमी हुई थी । उसके बाल एकदम गंदे, चिपचिपे थे । उसकी बोली किसी को समझ में ना आती, मगर उसके भाव एकदम स्पष्ट थे । हालांकि धीरे-धीरे हिंदी के एकाध शब्द उसने सीख लिए थे । मगर कुछ कहने के लिए वे पर्याप्त न थे ।
बुआ जानती थी कि 'पगला' पागल नहीं है । वह तो बस वक्त का सताया हुआ और भोला है । बुआ ने दो जोड़ी कपड़े भी पगला को सिल्वा कर दे दिए थे। मगर यहां गांव के लोग कुछ और ही सोचते थे ।
बहुत सारे लोग तो बुआ से इसलिए जल - भुन जाते थे कि अब उन्हें मुफ्त का नौकर मिल गया था ।
हालांकि बुआ उसे बचा- खुचा और झूठा ही देती थी, लेकिन बेचारे पगला को कैसे भी रखो, उसने कभी कोई शिकायत करना नहीं जाना था ।
पगला को आए दो - ढाई साल बीत चुके थे । अब तो बुआ का कोई भी काम पगला के बिना चलता ही ना था । सुबह- शाम उठते- बैठते बुआ चिल्लाती रहती.... 'पगला ये कर दे, बो कर दे।'
पगला को सारे जानवरों की जिम्मेदारी सौंपकर बुआ दिन भर खाली रहने लगी थी । अब बुआ के पास फुर्सत ही फुर्सत थी। सो, घर के बाहर एक छोटी सी दुकान भी रख ली - पान, तंबाकू, बीड़ी सिगरेट से लेकर सिंगार - पट्टी के सामान की ।
पगला बुआ के लिए बड़ा लकी साबित हुआ था । बुआ के सात देवर -देवरानी थे । सब का चूल्हा तो अलग था, मगर रहते थे सब अगल - बगल। हम लोग बुआ के घर ही थे कि एक दिन बुआ की देवरानी की छ: साल की बेटी के पांव से चांदी की पायल गुम हो गई । चारों और खूब ढूंढी, लेकिन पायल नहीं मिली । देवरानी को पगला पर शक हुआ । कहने लगी.... ' दीदी हो ना हो यह पगला का ही काम है ।'
हालांकि बुआ को यकीन न था । परंतु देवरानी का शक दूर करने के लिए मजबूरन बुआ ने पगला को बुलाकर पूछताछ की । बेबस पगला अपनी भाषा में रिरियाकर जाने क्या - क्या कहता उसकी बात किसी के समझ में नहीं आती । फिर बुआ की देवरानी उस पर और ज्यादा चिल्लाती । देवरानी का मान रखने के लिए बुआ ने पगला को दो-चार थप्पड़ भी लगा दिया ।
वैसे पगला था तो तीस - पैतीस साल का, मगर ऐसे रोया कि जैसे चार-पांच साल का बच्चा हो ।
अब पगला बहुत उदास रहने लगा था । जब कई दिन बीत गए इसी तरह । मुंह लटकाने के कारण बुआ ने उसे दो - चार बार डांटा भी, मगर थप्पड़ उसके दिल पर चोट कर गया था ।
कुछ दिन बाद वह एक रात कहीं चला गया । बुआ ने उसे बहुत ढूंढा, मगर न मिला ।
फिर एक दिन चांदी की पायल भी अनाज वाले ड्रम के पास अंधेरे में पड़ी मिल गई । अब बुआ को अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ । उन्होंने पुलिस में पगला के गुम होने की रिपोर्ट भी लिखवाई।
मगर दिल पर चोट खाई थी इसलिए पगला फिर कभी भी लौट कर नहीं आया ।
कहानी से मन में एक सवाल आता है क्या गरीब और बेसहारा आदमी की कोई इज्जत नहीं है। पगला भले ही मजबूर था लेकिन वह अपनी मेहनत की रोटी खा रहा था।
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