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स्वर्ग के लिए गया जी ही क्यों जाना - Family Story In Hindi - Storykunj

विवाह के इतने बरसों बाद भी निर्मला की कोख सूनी थी,  मगर गोद नहीं । 

 तीनों देवरो के सारे बच्चे निर्मला को अपनी बड़ी मां मानते थे। और कोख से जन्म देने वाली मां को दूसरी ।  परिवार के सारे बच्चों की वह बड़ी मां थी । घर की चार बहुओं में से निर्मला सबसे बड़ी थी। और बड़ी होने के नाते पूरे घर की कमान भी हमेशा उन्हीं के हाथों में रही। बड़ी मां के हिसाब से ही सारा घर चलता था। अपनी सासू मां के गुजर जाने के बाद से ही वह इस जिम्मेदारी को निभाती रही हैं। 

बड़ी मां को घर के बच्चों से बहुत ज्यादा मोह था। मगर सिर्फ लड़कों से । लड़कों को तो खूब लाड़ दुलार करती । खूब घी- दूध खिलाती-पिलाती । लेकिन लड़कियों के लिए अक्सर कहती कि बेटियों को दुलार कर ज्यादा सिर पर चढ़ाने की जरूरत नहीं है । मरने के बाद गया जी में अस्थि विसर्जन करने वह नहीं लेकर जाएंगी। इन्हें तो एक दिन पराए घर चले जाना है। 

घर में लड़कियों के लिए ढेर सारे कायदे कानून बने थे। जैसे कि अंधेरा होने के बाद वे घर से बाहर नहीं जा सकती। कहीं जाना हो तो भाई या मां को लेकर जाओ।  किसी लड़के से किसी तरह की बातचीत पर कड़ाई से पाबंदी थी।  

जबकि लड़कों के लिए किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं थी। उनके तो सात खून भी माफ थे। वह खाना भी थाली में छोड़ देते तो इसमें भी लड़कियों की ही गलती बता दी जाती। इतना ज्यादा खाना परोस दोगी तो क्यों नहीं छोड़ेगा । 

लड़कियां बड़ी मां की झिड़कियां सुन सुनकर खूब चिढ़ती तो थी। लेकिन बड़ी मां है यह सोच कर उनकी बातों को एक कान से सुना और दूसरे कान से निकाल दिया। कभी उनकी कही हुई बातों का बुरा नहीं माना। उन बेटियों में से एक बेटी रमा भी थी। रमा परिवार की सबसे छोटी बेटी थी। 

धीरे-धीरे परिवार बड़ा होता गया।  घर में जगह कम पड़ने लगी तो बेटो ने तो आसपास अपने रहने के लिए अलग-अलग ठिकाने खोज लिए। लेकिन बाकी सब इसी घर में बड़ी मां के साथ रहे। नए जमाने की बयार में घर परिवार की लड़कियां स्कूल जाने लगी। 

दुनियादारी की समझ बड़ी तो बड़ी मां के विचारों से जब तब बच्चों का टकराव भी हो जाता था। 


 समय बदला । लेकिन बड़ी मां के विचार नहीं बदले। सभी बच्चे सयाने हो गए थे। हां बड़ी मां में बदलाव आया था तो सिर्फ इतना कि सयाने बच्चों के आगे अब बड़ी मां कुछ कम जरूर बोलने लगी थी।

परिवार के बड़े बेटा-बेटियों का विवाह होते-होते बड़ी मां 65  वर्ष की हो गई थी।  बेटे-बहुओं को देखकर बड़ी मां की खुशी का ठिकाना ना था। उन्हें खूब ढेर सारा आशीष देती और अपना कलेजा ठंडा करती। परिवार की सबसे छोटी बेटी रमा का भी रिश्ता कर दिया था।

रमा की शादी का दिन था । सुबह से ही घर में शादी की तैयारियां चल रही थी। बड़ी मां घर की नई बहुओं से शादी की रस्में बता-बता कर संपन्न करवा रही थी। शाम ढलने पर बरात लड़की वालों के द्वार पर पहुंची तो वधूपक्ष ने बारातियों का शानो शौकत के साथ भव्य स्वागत किया।  दूल्हे को द्वार पूजा के लिए बुलाया गया।  कार से उतरते हुए दूल्हे को देखने के लिए वधू पक्ष के लोग,  लड़की की बहने, भाभीयाँ सभी द्वार पर नजरें गड़ाए हुए थी। घर की छत से रमा और उसकी सहेलियां भी दूल्हे को देखने को उत्सुक थी। 

 दूल्हा कार से काफी देर में बाहर निकला।  वह चाह कर भी चल नहीं पा रहा था। लड़के को दो-तीन लोग पकड़कर द्वार पूजा करवा रहे थे। कन्या पक्ष के लोगों ने जब पकड़ने का कारण पूछा तो पकड़े हुए लोगों ने दूल्हे को छोड़ दिया। तभी नशे में धुत दूल्हा धड़ाम से नीचे गिर पड़ा।  

इसे देखकर कन्या पक्ष के लोगों में हड़कंप मच गया और मारपीट की नौबत आ गई। इस बीच किसी ने पुलिस को बुला लिया।  लड़की वालों ने शादी से इंकार कर दिया और पुलिस की मौजूदगी में वर-वधू पक्ष में सहमति बनने के बाद ये शादी रोक दी गई और बगैर विवाह के बरात वापस लौट गई। दुल्हन बनी रमा की शादी नहीं हो पाई। 




जिस दिन से बारात दरवाजे से वापस लोटी है तब से ही बड़ी मां को रमा का रहना बहुत अखरने लगा था। कभी-कभी तो ताना भी मारती कि मायके में रहने वाली बेटी को भाई-भाभियों से हमेशा दबकर रहना पड़ता है। एक बार बारात वापस लौट जाए तो दूसरी जगह रिश्ता होना भी आसान नहीं है। उदास रमा कुछ न बोलती।

एक सुबह की बात है बड़ी मां पूजा पाठ करने के बाद गौ माता को रोटी खिला रही थी कि अचानक उनके शरीर के दाहिने हिस्से ने काम करना बंद कर दिया। आनन-फानन में उन्हें लेकर अस्पताल पहुंचे। डॉक्टर ने बताया कि इनके आधे शरीर में लकवा मार गया है। इलाज लंबा चलेगा। इनकी सेवा करनी होगी। इन्हें घर में ही रखिए। 
 
एक महीना हॉस्पिटल में इलाज करवाने के बाद घर के लोगों ने भी घर से ही इलाज करने में भलाई समझी।

 लकवे की वजह से बड़ी मां पूरी तरह बिस्तर पकड़ चुकी थी। बीमारी की खबर मिलते ही बड़ी मां की बहन, भाई-भतीजे के अलावा दूर और नजदीक के तमाम रिश्तेदार उन्हें देखने के लिए आए। लेकिन सबने बस हाल-चाल लिया और चलते बने। आग्रह करने पर भी बड़ी मां के पास चंद दिनों के लिए रुकने को कोई राजी ना हुआ।  घर की बहुओं ने भी अपने घर की परेशानियां गिनवाकर कन्नी काट ली। 

तब उनकी सेवा को आगे आई रमा बेटी।  वही रमा बेटी जिसकी बरात वापस लौट जाने के कारण अब उनकी नजरों में अवांछित रूप से वहां रह रही थी।   नहलाने, मालिश करने से लेकर उनके कपड़े बदलने तक का सारा काम रमा ही करती थी। यहां तक कि रमा ने बड़ी मां की सेवा में दिन रात एक कर दिया। आधी रात में भी बड़ी मां की एक आवाज पर रमा उनके पास खड़ी मिलती।

 एक दिन जब रमा बड़ी मां के सिर में तेल लगा रही थी तो उनकी आंखें भर आई। उन्होंने रोते हुए कहा....मुझे माफ कर देना बिटिया, मै बहुत गलत थी । बेटों के मोह-माया में मेरी आंखें अंधी हो गई थी। इतने दिन से हम देख ही नहीं पाए कि स्वर्ग गया जी में नहीं, स्वर्ग तो यहीं है बेटियों के पास। 

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