धनतेरस की पौराणिक कथा - Religion Story In Hindi - Storykunj
धनतेरस की पौराणिक कथा :-
एक बार भगवान विष्णु ने पृथ्वी लोक पर भ्रमण करने का विचार किया। यह बात उन्होंने माता लक्ष्मी को बताई तो माता लक्ष्मी ने भी भगवान विष्णु के साथ चलने को कहा। तब विष्णु जी ने लक्ष्मी जी से कहा कि आप मेरे साथ तभी चल सकती हैं, जब मेरी बात मानेंगी। लक्ष्मी जी ने विष्णु जी को स्वीकृति दे दी। फिर वे दोनों पृथ्वी लोक पर विचरण के लिए निकल पड़े। पृथ्वी लोक पहुंचने पर विष्णु जी ने लक्ष्मी जी से कहा कि आप यहीं ठहरकर मेरी प्रतीक्षा करिए। साथ ही एक बात का ध्यान रखने के लिए भी कहा कि जिस दक्षिण दिशा में वे जा रहे थे, देवी लक्ष्मी उस ओर बिल्कुल न देखें. इतना कहकर विष्णु भगवान वहां से चल पड़े।
लक्ष्मी जी ने रुकने का बहुत प्रयास किया, लेकिन उनका मन नहीं माना। ज्यो ही भगवान ने राह पकड़ी वे विष्णु जी के पीछे-पीछे चल दीं । थोड़ी दूरी पर जाने के बाद उन्होंने सरसों का एक खेत देखा, उसके बाद ऊख का खेत मिला। उस सरसों के खेत में जाकर माता लक्ष्मी ने फूल तोड़े और अपना श्रृंगार किया और ऊख तोड़ कर चूसने लगी। तभी विष्णु जी की नजर उन पर पड़ गई और उन्होंने माता लक्ष्मी को श्राप दिया कि तुमने चोरी की है, इसलिए तुम्हें 12 साल तक इस किसान की सेवा करनी होगी। ऐसा कहकर भगवान क्षीर सागर चले गए।
इस श्राप के बाद माता लक्ष्मी किसान के घर चली गईं। वह किसान बहुत निर्धन था। जब लक्ष्मी माता वहां पहुंची तो उन्होंने किसान से कहा कि मैं अब आप ही के घर रहना चाहती हूं। तब किसान ने एक बूढ़ी औरत का रूप धारण किए हुए माता लक्ष्मी को देखकर हां कह दिया। किसान के घर माता लक्ष्मी का वास हो गया और धीरे-धीरे धन से उसका घर परिपूर्ण हो गया। इस प्रकार 12 वर्ष व्यतीत हो गए।
बारह वर्ष का समय पूरा होने पर भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी को चलने के लिए कहा। तब किसान ने माता लक्ष्मी को विष्णु जी के साथ भेजने से इनकार कर दिया।
तब भगवान बोले तुम परिवार सहित गंगा जाकर स्नान करो और इन कोड़ियों को भी जल में छोड़ देना। जब तक तुम नहीं लौट आओगे तब तक मैं नहीं जाऊंगा। किसान ने ऐसा ही किया।
जैसे ही किसान ने गंगा में कोड़ियां डाली वैसे ही गंगा में से चार चतुर्भुज निकले और कोड़ियां ले
कर चलने को उद्धत हुए। तब किसान ने ऐसा आश्चर्य देखा और गंगा जी से पूछा कि - यह चार भुजाएं किसकी थी? गंगा जी ने बताया कि - हे किसान ! वे चारों हाथ मेरे ही थे, तूने जो कोड़ियां मुझे भेंट की है, वह किस की दी हुई है ? किसान बोला - मेरे घर में दो सज्जन आए हैं, उन्होंने ही दी है।
गंगा जी बोली - तुम्हारे घर जो स्त्री है वह लक्ष्मी जी हैं और पुरुष विष्णु भगवान हैं। तुम लक्ष्मी को न जाने देना नहीं तो पुनः उसी भांति निर्धन हो जाओगे। यह सुनकर जब वह घर लौटा तो भगवान से बोला कि - मैं लक्ष्मी जी को नहीं जाने दूंगा। तब भगवान ने किसान को समझाया कि इनको मेरा श्राप था जो कि 12 वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रही हैं। फिर लक्ष्मी चंचल होती हैं। इनको बड़े-बड़े नहीं रोक सके। किसान ने हठ पूर्वक पुनः कहा - नहीं, मैं लक्ष्मी जी को अब नहीं जाने दूंगा।
इस पर लक्ष्मी जी ने स्वयं कहा कि हे किसान ! यदि तुम मुझे रोकना चाहते हो तो सुनो।
कल तेरस है, तुम तेरस के दिन घर को अच्छी तरह से साफ करो। घर को साफ करने के बाद रात में घी का दीपक जला कर रखना। तब मैं तुम्हारे घर आऊंगी। एक तांबे के कलश में रुपए और पैसे भरकर उस समय तुम मेरी पूजा करना, किंतु मैं तुम्हें दिखाई नहीं दूंगी। ऐसा करने से मैं साल भर तुम्हारे समीप रहूंगी। इतना कहकर लक्ष्मी जी दसों दिशाओं में फैल गई, भगवान देखते ही रह गए।
दूसरे दिन किसान ने ऐसा ही किया और उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया। इसी भांति वह हर वर्ष तेरस के दिन लक्ष्मी जी की पूजा करने लगा। उसके घर पर लक्ष्मी माता का आशीर्वाद बना रहा।
तभी से मान्यता है कि तेरस के दिन धन की देवी की पूजा करने से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। तभी से यह धनतेरस का त्योहार मनाया जाने लगा।
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