नजर का फर्क - Inspirational Story In Hindi - Storykunj
मनीष अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था।
बेटे की शादी हो गई, घर में बहू आ गई। माता-पिता की खुशी का ठिकाना ना था।
माधुरी की मनीष के साथ शादी को मात्र ढाई वर्ष हुए थे। लेकिन ससुराल में माधुरी का मन नहीं लग रहा था। क्योंकि ससुराल के माहौल में वह अभी भी पूरी तरह रम नहीं पाई थी।
उसके सास - ससुर पुराने विचारों के थे। और वह अभी भी चटाई पर बैठकर खाना खाना पसंद करते थे, पानी हमेशा बैठकर ही पीना पसंद करते थे। उन्हें अपने पारंपरिक तौर तरीके से रहना पसंद था। उनका यही लाइफस्टाइल माधुरी को पसंद नहीं था। उसे लगता था इनकी लाइफ का कोई स्टैंडर्ड ही नहीं है। अभी तक डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाना खाने की आदत नहीं डाल पाए। वैसे तो अच्छे खासे पढ़े-लिखे हैं। लेकिन रहन-सहन के सारे तौर-तरीके पुराने हैं। सास सुबह-सुबह नहा कर ही रसोई बनाने पर जोर देती हैं। फिर चाहे खाना बनाने में पसीना- पसीना ही क्यों ना हो जाए।
हालांकि मनीष माधुरी को बहुत चाहते हैं। और उसका हर तरह से ख्याल भी रखते हैं। लेकिन पुराने लाइफस्टाइल की वजह से माधुरी को अब लगता है कि उसके पापा ने कैसी जगह शादी कर दी ?
कितने सपने थे उसके विवाह के बाद अपने घर को सजाने के, लेकिन यहां तो सासु मां के अनुसार मेंटेन किए हुए इस पुराने तौर-तरीके के घर में उसका दम घुटता है। अपने मायके जाती है तब जाकर उसे लगता है कि जैसे खुली हवा में सांस ली हो।
इस बार तो माधुरी ने मन ही मन निश्चय कर लिया था। अबकी बार जब भी वह अपने मायके जाएगी तो तभी वापिस आएगी। जब मनीष अलग घर लेने को राजी हो जाएगा। मनीष से वापस इस घर में आने से साफ-साफ इंकार कर दूंगी।
आज माधुरी बहुत खुश थी क्योंकि वह दिन भी आ गया। जब माधुरी को अपने मायके जाना था। माधुरी का भाई उसे लेने के लिए आने वाला था। वह चहकते हुए जल्दी-जल्दी अपना बैग पैक कर रही थी।
तभी सासु मां ने पूछा बेटी ! कितने दिन में वापस आओगी? तुम्हारे बिना कुछ अच्छा नहीं लगेगा। जल्दी वापस आ जाना।
माधुरी ने मन ही मन सोचा, अच्छा नहीं लगेगा या अब आपको आराम करने का टाइम नहीं मिलेगा। अब आपके आराम में खलल पड़ेगा। और अब घर का सारा काम भी तो आपको ही करना पड़ेगा। पैरों में दर्द होने का ढोंग भी नहीं कर पाओगे।
परंतु ऊपरी दिखावे में माधुरी ने कहा ! इतने दिनों बाद मां के घर जा रही हूं तो महीने दो महीने तो रहूंगी वहां........
जवाब सुनकर माधुरी की सास चुप रह गई।
आज माधुरी मन ही मन में बहुत खुश थी। सोच रही थी कम से कम अब इन खडूस लोगों से छुटकारा मिलेगा। अब तो मनीष के अलग होने पर ही वापस लौटेगी।
मायके मैं पहुंचकर माधुरी ने चैन की सांस ली। उसकी मां, भैया - भाभी और छोटी बहन सब ने उसको सिर आंखों पर उठा लिया। दिनभर बातों से किसी को फुर्सत नहीं मिली, हंसी मजाक के माहौल में कब शाम हुई पता ही नहीं चला। रात में माधुरी की पसंद की बेड़मी पुरी, आलू की सब्जी, मलाई कोफ्ता और बूंदी का रायता मां और भाभी ने मिलकर बनाए थे।
माधुरी ने अपनी भाभी की बलैया लेते हुए कहा !भाभी तुम्हें अभी तक मेरी पसंद याद है।
भाभी ने हंसते हुए कहा की ! मांजी है ना, याद दिलाने के लिए, भूल कैसे सकती हूं।
माधुरी मां के गले लग गई मां, मैं आपको बहुत मिस करती हूं । मेरी सास आपके जैसी क्यों नहीं है।
फिर भाभी को देखकर उसने आह भरी और कहने लगी। भाभी आप कितनी किस्मत वाली हैं। जो आपको इतनी अच्छी ससुराल और मेरी मम्मी जैसी इतनी अच्छी सास मिली।
सुनकर भाभी और मम्मी दोनों मुस्कुराने लगी, बोली कुछ नहीं।
अगले दिन माधुरी ने भाभी को कहते हुए सुना, उसकी भाभी भैया से कह रही थी ! आप कैसी बात करते हो ?
मैं, दीदी और मां के साथ बाजार नहीं जाना चाहती, मुझे आपके साथ जाना है। मैं कितने दिनों से सोच रही थी आपके साथ जाकर अपने पसंद की शॉपिंग करूंगी। और आप हैं कि फिर मना कर रहे हैं। मैं सिर्फ और सिर्फ आप ही के साथ बाजार जाऊंगी बस......
भैया धीमी आवाज में बोले- दीदी आई है ना, तो उनके साथ जाने में तुम्हें क्या परेशानी है?
मां के साथ जाओगी तो मां भी खुश होगी ना, हम फिर कभी चले जाएंगे।
भाभी नाराज होती हुई बोली ! वे आपकी मां है, आप जाओ उनके साथ, मुझे नहीं जाना।
माधुरी इससे ज्यादा नहीं सुन सकी। उसके कानों में भाभी के कहे हुए स्वर गूंज रहे थे-
आपकी मां.........।
आपकी मां............।
माधुरी सोचने लगी। तो क्या भाभी के मन में भी मां के प्रति अपनेपन का वैसा भाव नहीं है। जैसा मैं सोचती थी। भाभी भी मेरी मां को पराया समझती है, भाभी के पति की मां, भाभी कि नही।
अब माधुरी के अंतर्मन ने कहा- हां, वे तुम्हारी और तुम्हारे भाई की मां है, भाभी की मां नहीं, भाभी की सास है सिर्फ सास ।
अंतर्मन ने कहा - तुम भी तो मनीष की मां को मां नहीं, सास ही मानती हो ना ।
लेकिन मेरे सास-ससुर तो बहुत खडूस है, माधुरी ने अपने अंतर्मन से बचाव किया।
तो तुम्हारी भाभी की नजर में तुम्हारी मां अर्थात उसकी सास खडूस होंगी..... माधुरी की अंतरात्मा ने जवाब दिया...।
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अब माधुरी को अच्छी तरह समझ में आ चुका था कि यह सब नजर का फर्क है, और दो परिवारों का फर्क है। जिस प्रकार दो लोग एक जैसे नहीं हो सकते, वैसे ही दो परिवार भी एक जैसे नहीं हो सकते, विचारों का अंतर तो होगा ही। फिर चाहे उसकी खुद की मां हो या उसकी सास।
आज जिस प्रकार वह अपनी सास से छुटकारा पाना चाहती है। शायद ऐसे ही उसकी भाभी भी यही चाहती हो।
नहीं, अब मैं ऐसा नहीं करूंगी। मैं मनीष को उसके माता-पिता से अलग करने की भूल नहीं करूंगी।
माधुरी कितना गलत थी। उसको अपनी गलती का एहसास हो चुका था। सास ससुर के प्रति जो उसका नज़रिया था वह अब पूरी तरह बदल चूका था।
आज जब माधुरी ससुराल पहुंची तो ममतामई सास को अपनी बहू की राह निहारते हुए पाया। उन्होंने माधुरी को जीवन का सिद्धांत समझाया और उसके दिल में प्रेम का सागर भरा। माधुरी का वैवाहिक जीवन खुशियों के रंग से सराबोर हो उठा ।
अति उत्तम दोस्त!
ReplyDeleteऐसी कहानी लिखते रहो।
Behad sandar
ReplyDeleteVery very nice..
ReplyDeleteThanks to everyone!
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