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मेरी मां - Family Story In Hindi - Storykunj

  सुबह का समय था शालिनी मंदिर से लौट के आई तो देखा कि मम्मी की तीन मिस कॉल आई हुई है । कहीं कुछ अनिष्ट तो नहीं । सोच कर उसका दिल बैठा जा रहा था । इतनी सुबह सुबह मम्मी का फोन तीन बार,  चिंता लगी उसने जल्दी से मम्मी के पास फोन लगाया ।  हे भगवान सब ठीक हो, 

 हेलो  मम्मी ! सब ठीक है ना....... तीन बार फोन क्यों किया? आपकी तबीयत तो सही है ना, कुछ परेशानी........??????? 

 उधर से आवाज आई, नहीं नहीं बेटा! सांस ले ले,  मैं ठीक हूं  | ऐसी कोई बात नहीं है......... 

 बस सुबह-सुबह एक बुरा सपना देखा था, तो मन  बेचैन सा हो रहा था । खुद को बहुत रोकने की कोशिश की इतनी सुबह सुबह फोन ना  करूं । पर रहा नहीं गया । लेकिन जब किसी ने फोन नहीं उठाया तो यह सोच कर रह गई कि आज रविवार है तुम सब सोए होंगे ।

 प्रदीप जी का नंबर लगा ही नहीं तो सहम सी गई थी ।
 अरे........... मम्मी ! सब सही है आप ज्यादा ना सोचा करो। वैसे भी आप की तबीयत ठीक नहीं रहती...... यहां सब ठीक है । आप बताओ......? सब कैसे हैं......? ।
 
यहां भी सब ठीक है बेटा ! 
चल..... मैं रखती हूं ,
 तेरी राजी खुशी पूछने को फोन किया था ।

 बात खत्म करके शालिनी जब कमरे में आई तो देखा प्रदीप अपने मोबाइल में आंखें गड़ाए बैठे हैं। 

 उसने प्रदीप से पूछा ! आप अभी जागे क्या ? 

नहीं तो ! आधा घंटा हो गया होगा । प्रदीप ने जवाब दिया ।

" मेरा फोन काफी देर से बज रहा था ना आपने देखा नहीं " 

 "हां.... देखा था ना, तुम्हारी मम्मी का फोन था,  मैंने सोचा...... । तुम खुद आकर कर लोगी " । प्रदीप ने  उघते   हुए जवाब दिया ।

 " तीन बार आने पर भी........" शालिनी गुस्से से प्रदीप को देख कर बोली ।
  
  हां तो ! तुम्हारी वही सब रोजाना की बातें। क्या बनाया?  क्या खाया?  इसके घर की, उसके घर की,  ब्ला- ब्ला।       

   प्रदीप की बातें सुनकर शालिनी गुस्सा होती हुई रसोई में गई और प्रदीप को नाश्ता तैयार करके दिया । अभी नाश्ता कर ही रहे थे कि प्रदीप के फोन की घंटी बजी । 

प्रदीप बोले ! शालिनी देखो तो किसका फोन है ?  मेरे हाथ साफ नहीं है ।

  शालिनी बोली "तुम्हारी मम्मी" का फोन है ।

 शालिनी का जवाब सुनकर प्रदीप हैरानी से उसकी तरफ देखते रह गए । सोचने लगे कि शालिनी तो हमेशा से ही मम्मी जी-मम्मी जी कहा करती । कोई भी तीज त्यौहार होता था तो तुरंत मम्मी जी को फोन करके पूछती । बहुत हुआ तो यहां वाली मम्मी जी , वहां वाली मम्मी जी कहकर ही बात करती । 

पहली बार आज उसका "तुम्हारी मम्मी"  कह कर बोलना मुझे अच्छा नहीं लगा था।  लेकिन मैंने भी तो कभी अपने आप से (सरोजनी नगर) उसकी मम्मी को फोन नहीं किया । कभी शालिनी खुद ही फोन लगाकर पकड़ा देती थी तो उनसे एक- आध बार बात हो जाया करती थी।

  शायद मुझे भी सोचना चाहिए था कि शालिनी को कैसा लगता होगा? 




 शालिनी अभी काम में व्यस्त है ।...............

 इतने में प्रदीप शालिनी को आवाज लगाते हैं....... 

शालिनी ! क्यों ना आज हम सरोजनी नगर मम्मी जी से मिलने चलें ।  बहुत दिन हो गए हैं ।

 शालिनी की तो जैसे दिल की बात कह दी प्रदीप ने.... खुशी से  चहकती हुई बोली....... हां - हां चलिए......... मैं कब से मायके नहीं गई हूं ।

 प्रदीप मन ही मन खुश थे कि शालिनी की नाराजगी कितनी आसानी से दूर हो गई। 


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